यूपीः पौने दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द

यूपीः पौने दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द

इलाहाबाद, शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों के प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के पद पर समायोजन को असंवैधानिक करार दिया है। पीठ ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा माध्यम से दिए गए प्रशिक्षण को भी अवैधानिक ठहराया है।
यह महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्ण पीठ ने शनिवार को खचाखच भरे न्याय कक्ष में सुनाया। पूर्ण पीठ ने कहा कि न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने और उसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है। ऐसे में राज्य सरकार ने सर्व सिक्षा अभियान के तहत बिना पद के संविदा पर नियुक्त शिक्षामित्रों का समायोजन करने में अपनी विधायी शक्ति का उल्लंघन किया है। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानक एवं न्यूनतम योग्यता को लागू करने में भी राज्य सरकार असफल रही। शिवम राजन सहित कई अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए पूर्ण पीठ ने कहा कि शिक्षामित्र अध्यापक पद पर नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते लेकिन उनके समायोजन के लिए राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के प्रावधान के विपरीत बिना विधिक अधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। इसके सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन भी नहीं किया। राज्य सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए, जिसका उसे वैधानिक अधिकार नहीं था।
पूर्ण पीठ ने कहा कि बेसिक शिक्षा अधिनियम के तहत 2001 के पूर्व बनाई गई उत्तर प्रदेश अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के अनुसार सहायक अध्यापक के लिए स्नातक व इसके निमित्त प्रशिक्षण आवश्यक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति 26 मई 1999 के शासनादेश से हुई है और वे न तो सेवा नियमावली 1981 के तहत न्यूनतम योग्यता रखते हैं और न रूल 2001 के तहत। ऐसे में वे 27 अगस्त 2010 को जारी अधिसूचना द्वारा लागू टीईटी से छूट के काबिल नहीं हैं। ऐसे में शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के लिए सेवा नियमावली 1981 में किया गया 19वां संशोधन असंवैधानिक है।
फैसले के आधार
- शिक्षामित्र अस्थायी व संविदा पर नियुक्त किए गए। ऐसे में इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
- शिक्षामित्रों का चयन किसी पद के सापेक्ष नहीं हुआ इसलिए रद्द हुआ समायोजन।
- शिक्षामित्रों के लिए किए गए सरकार के सभी कार्य पूर्व नियोजित व दुर्भावनापूर्ण।
- शिक्षामित्रों की नियुक्ति में नहीं हुआ आरक्षण का अनुपालन। अधिकतर मामलों में जहां जिस जाति के ग्राम प्रधान थे, वहां उसी जाति के शिक्षामित्रों की कर दी गई नियुक्ति।
- शिक्षामिक्षों को समायोजित करने के लिए अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया संशोधन 16 ए अवैधानिक। ऐसे में शिक्षामित्रों का समायोजन अवैध।
- राज्य सरकार ने केंद्र के नियमों को न मानकर मनमाने तरीके से संशोधन किए, ऐसे में वे असंवैधानिक।
- शिक्षामित्रों को तथ्य छिपाकर ट्रेनिंग कराई गई है, ऐसे में ट्रेनिंग अवैध।
- शिक्षामिक्षों की नियुक्ति 11 माह के लिए की गई थी, जिसका प्रत्येक वर्ष रिन्युअल होता था, वह भी एकतरफा और पूर्व नियोजित थी।
- शिक्षामित्र 1981 की नियमावली का पालन नहीं करते इसलिए वे टीईटी के योग्य भी नहीं।
- राज्य सरकार ने केंद्रीय आरटीई एक्ट 2009 में कानून के विपरीत संशोधन किए, जो असंवैधानिक है।
यह था मामला
प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्र हैं। इनकी नियुक्ति बिना किसी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया। 2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन सहित कई युवाओं ने समायोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विचाराधीन याचिकाओं पर अन्तिम निर्णय लेने को कहा। जिस पर यह पूर्णपीठ सुनवाई कर रही है।

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