पाठक मंच की गोष्ठी में कथाकृति सम्राट अशोक पर चर्चा आयोजित

शिवपुरी। साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा निर्देशित पाठक मंच शिवपुरी की विचार गोष्ठी गत दिवस डॉ. परशुराम शुक्ल विरही के आवास पर संपन्न हुई। गोष्ठी में मंच के पाठक प्रबुद्ध साहित्यकार तथा पत्रकारों ने भाग लिया और लेखक अशोक श्रीवास्तव के ऐतिहासिक उपन्यास सम्राट अशोक पर समीक्षात्मक विचार-विमर्श किया।
अरुण अपेक्षित ने चर्चा आरंभ करते हुए कहा कि उपन्यास की कथा ऐतिहासिक हैं, किन्तु उसमें कल्पनाओं द्वारा बहुत अधिक विस्तार किया गया है, पात्रों और घटनाओं की भी अधिकता है। सुधीर बाबू पाण्डेय ने कहा कि इसकी कथा प्राय: सर्वजनीय होते हुए भी लेखक ने इसको अधिक रुचिकर बनाया है। भाषा संस्कृत निष्ठ और शैली में कसावट का अभाव है। विस्तार की अधिकता तथा घटनाओं, पात्रों की भीड़ के कारण उपन्यास को अंत तक पढ पाना कठिन है। पाठक मंच के संयोजक पुरुषोत्तम गौतम ने कहा कि सम्राट अशोक का जीवन दो भागों में विभाजित है। पूर्वाद्र्ध में वह क्रूर, हिंसक और घोर अत्याचारी जीवन जीता है। कलिंग युद्ध में जिस प्रकार निरीह प्रजाजनों, स्त्री-पुरुषों, बालकों की नृशंस हत्याओं, आगजनी, बाजारों, गौशालाओं को जलाने जैसे घोर अमानुशिक गतिविधियों को संचालित करने वाला सम्राट जीवन के उत्तराद्र्ध में बौद्ध धर्मावलम्बी बनने के साथ ही करुणा, मानवीय, संवेदना, सद्भाव, शांति और अहिंसा का सर्र्वोच्च प्रतीक बन गया, इस तथ्य को लेखक ने सफलता से चित्रित किया है। डॉ. हरिप्रकाश जैन ने उपन्यास की भाषा को अत्यंत क्लिस्ट, दुरूह और शैली को कसावट से रहित बताया। अत्यधिक विस्तार भी उपन्यास की पठनीयता में सहायक नहीं है। आचार्य सुरेश शर्मा ने उपन्यास की कथा वस्तु को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए उसकी प्रशंसा की हरिश्चंद्र भार्गव ने घटनाओं और पात्रों की अधिकता को ठीक नहीं माना अप्रचलित शब्दों और लम्बे-लम्बे जटिल वाक्यों के कारण भाषा की बोझलता बढ़ गई है।
प्रमोद भार्गव ने कहा कि कलिंग युद्ध के श्चात अशोक विश्व इतिहास के छह महान सम्राटों में से एक माना गया है। उसके शिलालेख, लौह स्तंभ और धम्मचक्र आज भी इतिहास के विद्यार्थियों को उसके जीवन में उतरने को बाध्य कर देते हैं।

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