फिर भी बना दिया बीआरसी से एपीसी

मामला कराहल बीआरसी को एपीसी बनाए जाने का

कराहल। जिले के कराहल विकासखण्ड में पदस्थ खण्ड स्रोत समन्वयक के ऊपर कई मामलों में विभागीय जांच चलने के बावजूद भी तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ को उनमें ऐसा न जाने क्या मीठा दिखाई दिया कि जब उन्हें बीआरसी के पद से हटाया गया तो उन्होंने उन्हें फिर से एक जिम्मेदार पद का दायित्व सौंप दिया, जबकि बीआरसी को श्योपुर कलेक्टर द्वारा उनकी कई शिकायतें मिलने के बाद हटाया गया था।
अनियमितताओं सहित कई विभागीय मामलों में जांच लम्बित होने के बाद भी मोहन सिंह गौतम को सहायक परियोजना समन्वयक के पद का दायित्व सौंपना साथ ही शिकायत शाखा का प्रभार भी उन्हीं के हाथों में सौंपना कहीं न कही जिला प्रशासन की कमी को झलकाता है? जबकि विभागीय सूत्रों की माने तो इनके ऊपर चल रही जांच में से एक में इन्हें दोषी भी पाया जा चुका है? जबकि कई जांचें लम्बित हैं?
मालूम हो कि पूर्व में मोहन सिंह गौतम कराहल में खण्ड स्त्रोत समन्वयक के पद पर पदस्थ थे, लेकिन कई अनियमितताओं की विभागीय जांच चलने के साथ-साथ जब जिलाधीश को उनकी कई शिकायतें भी मिलीं तो उन्होंने श्री गौतम को तत्काल खण्ड स्त्रोत समन्वयक के पद से हटाकर उनकी मूल संस्था पहेला में भेज दिया था लेकिन तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ एच.पी. वर्मा ने श्योपुर जिलाधीश द्वारा हटाए गए बीआरसी को सहायक परियोजना समन्वयक की जिम्मेदारी सौंप दी और पुरस्कार स्वरूप उन्हें शिकायत शाखा का प्रभार भी सौंप दिया? ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब उनके ऊपर कई विभागीय जांच लम्बित होने के बावजूद भी उनके मूल संस्था में जाने से रोककर उन्हें फिर से एक नया स्थान क्यों दे दिया गया?
आखिर कब जाएंगे अपनी मूल संस्था?
अनियमितताओं सहित कई मामलों में घिरे होने के बाद जब मोहन सिंह गौतम को बीआरसी पद से हटाकर उनकी मूल संस्था पहेला भेज दिया था तो उन्हें वहां जाने से आखिर रोका क्यों गया? और यदि रोका ही गया था तो कई जांचों के लम्बित होने के बावजूद भी उन्हें फिर से एक नए पद की जिम्मेदारी सौंपकर तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ आखिर जनता को क्या संदेश देना चाहते थे?
इनका कहना है
इस मामले की जानकारी मुझे नहीं है, देखना पड़ेगा तभी मैं कुछ कह पाऊंगा।
डॉ. राहुल हरिदास फटिंग
सीईओ, जिला पंचायत श्योपुर

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