छोटी उम्र में बड़ा पुरस्कार मिलने से हूँ खुश
बिसमिल्ला खां युवा पुरस्कार से अलंकृत साजी से स्वदेश की बातचीत
ग्वालियर। मुझे बहुत खुशी हो रही है कि इतनी कम उम्र में इतने बड़े पुरुस्कार के लिए मेरा चयन किया गया है। इससे निश्चित ही मेरा उत्साह बढ़ेगा। यह बात राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा वर्ष 2013-14 बिसमिल्ला खां युवा पुरुस्कार से अलंकृत नृत्यांगना साजी मेनन ने गुरुवार को स्वदेश से दूरभाष पर चर्चा के दौरान कही।
सुश्री साजी को यह अलंकरण मोहनीअट्टम नाट्य शैली में उनकी विशिष्ट प्रतिभा के लिए प्रदान किया जाएगा। साजी ग्वालियर के कला समूह के वरिष्ठ कलाकार कलामंडलम शंकर नारायण व देवी नायर की पुत्री हैं। उनका बचपन और प्रारंभिक संस्कार कलासमूह के आंगन में ही उन्हें मिले हैं। मूल रूप से ग्वालियर निवासी और वर्तमान में मुम्बई में रहकर अपनी कला को आगे बढ़ा रहीं साजी ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि मोहिनीअट्टम केरल की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला शास्त्रीय नृत्य है।
साहित्यिक रूप से नृत्य शैली में विशेष माना जाने वाला मोहिनी अट्टम केरल के मंदिरों में प्रमुख रूप से किया जाता था। साजी मुंबई, बैंगलोर, चैन्नई साहित देश विदेशों में कार्यक्रमों की प्रस्तुति दे चुकी हंै और वर्तमान में मुंबई में कनकम नृत्य अकादमी का संचालन कर रही हैं।
इसके साथ ही सुश्री साजी को मोहनीअटट्म शैली में इस वर्ष का महाराष्ट्र राज्य सरकार (पीपुल आर्ट फाउण्डेशन) द्वारा छत्रपति शिवाजी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाएगा।
बचपन से थी नृत्य में रुचि
मैं पांच साल की थी उस समय मेरे माता-पिता ने मुझे भरतनाट्यम सीखने भेजा था, क्योंकि उस कच्ची उम्र में भी मेरे कानों में संगीत की जैसी भी धुन सुनाई पड़ती थी वैसे ही मेरे पैर उस पर थिरकने लगते थे। मुझे बचपन से ही नृत्य में रुचि थी। पांच वर्ष की उम्र में मैं कला समूह में भरतनाट्यम सीखने जाती थी, मेरे पिता घर में ही अभ्यास भी कराते थे। घर में शुरू से शास्त्रीय नृत्य का माहौल देखने के कारण इस क्षेत्र में जाने का निश्चय किया। शुरुआत में मेरे पिता शंकर नारायण, इसके बाद पद्मभूषण कनक रिले से मोहनी अट्टम नाट्य शैली की शिक्षा प्राप्त की। मैंने नृत्य शिक्षा मुंबई के नालंदा नृत्य महाविद्यालय से उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया।