चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ ?
काव्यरस से शहर को रससिंचित कर गई ‘अटल गीत गंगा’
आगरा। ‘चौराहे पर लुटता चीर, प्यादे से पिट गया वजीर। चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ? राह कौन सी जाऊँ मैं?....अटल जी के यह काव्यमय शब्द और गजल गायक सुधीर नारायण के सुरों ने शनिवार को शहर को ‘अटल गीत गंगा’ में गोता लगाने को मजबूर कर दिया।
अगर भारतीय राजनीति में कोई ऐसा व्यक्ति हुआ है जिसके स्वभाव, भाषण शैली के लोग दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कायल रहे हैं तो एक ही नाम याद आता है- भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। शनिवार को उनके जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर हर वर्ष की भांति वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक चौबे ने कैंट रोड स्थित पंजाबी भवन में अटल गीत गंगा साहित्यिक व सांगीतिक गोष्ठी का आयोजन किया।
गोष्ठी की शुरूआत पं. दीनदयाल उपाध्याय जी व श्यामाप्रसाद मुखर्जी के चित्र पर सेवा भारती के क्षेत्रीय सेवा प्रमुख गंगाराम जी, प्रांत प्रचार प्रमुख प्रदीप जी, महानगर प्रचारक गोविंद जी, यमुना सत्याग्रही पं. अश्विनी वशिष्ठ, वरिष्ठ भाजपा नेता हरद्वार दुबे, शिवशंकर शर्मा, प्रभूदयाल कठेरिया, बेबीरानी मौर्य व समाजसेवी जितेंद्र चौहान ने माल्यार्पण कर किया।
गोष्ठी का प्रारंभ ब्रजभाषा के मर्धून्य कवि सोम ठाकुर ने अपनी काव्य रचना से किया। कवियत्री शैलबाला अग्रवाल, शिक्षाविद् संजीव यादव ने काव्यपाठ किया। कार्यक्रम संयोजक अधिवक्ता अशोक चौबे ने कहा कि नैसर्गिक प्रतिभा के धनी अटलजी की कवितायें और उनके भाषण बहुत जोशीले हुआ करते थे। उन्होंने अटल जी एक कविता श्रोताओं को सुनाई ‘एक बरस बीत गया, झुलासाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास, सिसकी भरते सावन का। अंतर्घट रीत गया...एक बरस बीत गया...। गोष्ठी में देरशाम तक शहर के रसिक श्रोता अटल जी के गीतों का आनंद लेते रहे। संचालन साहित्यकार सुशील सरित ने किया।