दिल्ली में वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त
नई दिल्ली। दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में छाई धूलभरी धुंध ने लोगों का घरों से न केवल निकलना मुहाल कर दिया बल्कि स्कूलों तक को बंद करना पड़ा। देश की शीर्ष अदालत ने प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए कह़ा कि क्या प्रशासन लोगों के मरने का इंतजार कर रहा है?
यदि वायु प्रदूषण का स्तर पीएम 2.5 के लिए लगातार 48 घंटे तक 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच जाता है तो निजी कारों के लिए ऑड ईवन फार्मूला स्वत ही लागू कर दिया जाएगा और सभी विनिर्माण गतिविधियां बंद कर दी जाएगी। केंद्र की ग्रेडिड कार्य योजना को उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद यह फैसला सामने आया।
दिल्ली में साल के पहले दिन यानि एक जनवरी 2016 को ही वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी खराब थी और इसके अलावा दीपावली के बाद के, पहले चार दिनों में वायु प्रदूषण के स्तर को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पिछले 17 सालों में पहली बार सर्वाधिक खतरनाक स्तर पर करार दिया। साथ ही स्कूलोंं को तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया और बच्चों को घरों के भीतर रहने तथा लोगों को कार्यालय जाने की बजाय घरों से काम करने का परामर्श जारी करना पड़ा।
इस समय भी दिल्लीवासी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दिल्ली में धुंध की आपातकालीन स्थिति और सरकार के पास उससे निपटने की कोई आकस्मिक योजना नहीं होने पर सालभर अदालतों की कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं और उन्होंने कहा कि क्या ‘लोगों के मरने का इंतजार किया जा रहा है’’ और हालात ‘जातिसंहार’ जैसे बन गए हैं। नवंबर महीने में दिल्ली उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण एनजीटी और उच्चतम न्यायालय तीनों ने शहर में हवा की खराब गुणवत्ता से निपटने के लिए केंद्र और चार उत्तरी राज्यों की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई।