जनमानस
हिंदू महिलाओं का वास्तविक सशक्तिकरण
दिल्ली हाई कोर्ट का यह क्रांतिकारी निर्णय है कि हिंदू अविभाजित परिवार में उम्र के लिहाज से सबसे बड़ी महिला सदस्य घर की 'कर्ता' हो सकती है। हिंदू परंपरा में 'कर्ताÓ का खास पारिवारिक महत्व है। लेकिन यह दर्जा पुरुष सदस्य को ही मिलता रहा है। संयुक्त परिवारों में 'कर्ता' एक तरह से परिवार का प्रबंधक होता है। कई तरह के धार्मिक कर्मकांड करने का अधिकार सिर्फ उसको होता है। हिंदू परंपरा धर्मशास्त्र और मिताक्षर जैसी स्मृतियों से निर्धारित हुई। उनके मुताबिक पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी केवल पुरुष सदस्य होते रहे। मगर 2005 में लागू हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 6 के तहत पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार में बेटियों को बेटों के समान हक प्रदान किया गया। इससे एक सर्वथा नई व्यवस्था अस्तित्व में आई। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी को अपने ताजा फैसले का आधार बनाया है। कोर्ट ने कहा कि नए कानून के बाद यह विसंगति पैदा हो गई कि महिला पैतृक संपत्ति की उत्तराधिकारी तो हो सकती है, लेकिन उसके प्रबंधन में उसके अधिकार सीमित हो जाते है। इस तरह साफ है कि 2005 के कानून ने जो आधार बनाया, वह अपने तार्किक मुकाम पर पहुंचा है। इससे हिंदू परिवारों की बनावट एवं अंदरूनी समीकरणों में गुणात्मक बदलाव का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इसके परिणामस्वरूप हिंदू महिलाओं का वास्तविक सशक्तिकरण होगा। वैसे ध्यानार्थ यह है कि कोई कानून या न्यायिक फैसला अपने समय की अभिव्यक्ति होता है। इनमें समाज में जारी प्रवृत्तियां ही प्रतिबिंबित होती हैं। अब महिलाएं अपने पैतृक घर में भी कर्ता हो सकेंगी। ऐसा होना समाज और परिवार में महिलाओं के दोयम दर्जे की सदियों पुरानी रवायत पर जोरदार प्रहार होगा। आशा की जानी चाहिए कि यह समता और लैंगिक न्याय की दिशा में अपने समाज का युगांतकारी कदम होगा।
हिरेन्द्र अमझरे