तीन शताब्दी पुराना है अर्जी वाला गणेश मंदिर
*प्रशांत शर्मा
इस कॉलम के माध्यम से हम अपने पाठकों को प्रति शनिवार शहर के एक धर्मस्थल से जुड़ी ऐतिहासिक और अन्य विशेषताओं की जानकारी देंगे। इसके साथ ही यह भी बताने का प्रयास करेंगे कि यहां किस दिन विशेष पूजा -अर्चना होती है। इसकी पहली कड़ी में हम शिन्दे की छावनी स्थित अर्जी वाले गणेश जी के मंदिर के दर्शन आप सभी को कराने जा रहे हैं।
किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले पूजे जाने वाले गजानन महाराज (भगवान श्रीगणेश)की महिमा अपरम्पार है। देश में ही नहीं विदेशों में भी भक्त उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। शहर में भी गनपति बप्पा के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। ऐसा ही लगभग तीन शताब्दी पुराना गणेश मंदिर शिन्दे की छावनी में स्थित है। इसे अर्जी वाले गनपति के नाम से जाना जाता है। यहां जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं लेकर आता है वह अवश्य ही पूरी होती हैं।
इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना पर्ची पर लिखकर एक नारियल के साथ मंदिर में अर्पित कर देते हैं। अब तक करीब 80 हजार लोगों की मनोकामनाएं गनपति बप्पा ने पूरी की हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या उन युवाओं की है जो अपने विवाह और मनपसंद जीवनसाथी मिलने की कामना लेकर यहां आते हैं।
कुंवारों को मिलता है मनपसंद जीवनसाथी
अर्जी वाले गणपति के दरबार में सबसे अधिक अर्जियां ऐसे युवाओं की आती हैं, जिनकी शादी में बाधाएं आ रही हों, कहा जाता है कि यहां अर्जी लगाने वालों की कामना अवश्य ही पूरी होती है और उन्हें अपना मनपसंद जीवनसाथी मिलता है। विवाह के बाद नव दंपत्ति मंदिर में दूब से पूजा कर लड्डुओं का भोग लगाते हैं। वहीं जिसकी समस्या का समाधान नहीं होता वह बप्पा के दरबार में पर्ची पर अर्जी लिखकर लाते हैं और बप्पा के दरबार में लगाते हैं। मंदिर के पुजारी राजू पंडित ने बताया कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है। आज से 15 साल पहले ओकाफ से इसका रिकॉर्ड मिला था। इस मंदिर की सेवा में ललित खण्डेलवाल के पूर्वज समर्पित रहे हैं। इस खानदान के वारिस मंदिर की सेवा और हर बुधवार को होने वाले भंडारे के लिए किसी तरह का चंदा या सहायता नहीं लेते। चढ़ावे में आए धन के अलावा वो स्वयं अपनी व्यक्तिगत आय भी मंदिर की सेवा में समर्पित करते हैं।
पहले था छोटा प्रवेश द्वार
मंदिर के पुजारी राजू पंडित ने बताया कि अर्जी वाले रिद्धि-सिद्धी गणेश मंदिर का प्रवेश द्वार पहले काफी छोटा था यहां सेवा करने वाले ललित खंडेलवाल को 2009 में बप्पा ने सपना देकर इसे बड़ा करने के लिए कहा, इसके बाद उन्होंने इसे बड़ा कराने के साथ ही राम नाम के टाइल्स भी लगवा दिए। इसके बाद श्री खण्डेलवाल एक बार जयपुर गए तब उन्होंने वहां एक मंदिर में कांच का काम देखा, वहां कारीगरों से ग्वालियर आने के लिए कहा, लगभग 15 दिन बाद ही जयपुर से आए कारीगरों ने मंदिर में कांच की ठीक वैसी ही सजावट कर दी।
ये होते हैं मुख्य आयोजन
* लगभग 24 साल से हो रहा है भण्डारा
* लगभग 20 से 25 हजार लोगों के लिए तैयार होती है प्रसादी।
*बप्पा के चोला छोडऩे के बाद भंडारे का स्वरूप बढ़ा
* दोपहर 1 से 3 व शाम को 7 से 10 बजे तक हर बुधवार को भंडारे का आयोजन।
ये है प्रतिमा की विशेषता
* बप्पा के एक हाथ में फरसा,एक हाथ में कमल, एक हाथ में वरमाला,एक हाथ में वेद, बप्पा की संूढ़ में साढ़े तीन अंटे लगे हैं, दोनों दांत साबुत हैं,हर बुधवार को मंत्रोच्चारण के साथ चोला चढ़ाया जाता है
मंदिर कमेटी में हैं लगभग 15 सदस्य
मंदिर का प्रबंधन 15 सदस्यीय कमेटी करती है। इसके अध्यक्ष कैलाश चन्द्र गुप्ता है। वहीं मंदिर का संचालन ललित कुमार खण्डेलवाल द्वारा किया जा रहा है। श्री खण्डेलवाल ने बताया कि हर आयु के श्रद्धालु अपनी समस्या और बाधाओं को दूर करने गणपति को अर्जी देते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।