जय भारत जय जय हे भारत
जय भारत जय जय हे भारत
प्रवीण दुबे
समय चक्र अर्थात निरंतर गतिमान ऐसी प्रक्रिया जो न कभी रुकती है न विराम लेती है। इतना अवश्य है समय चक्र के प्रवाह में जो घटित होता है वह इतिहास बन जाता है। पिछले कुछ समय से अपनी संस्कृति अपनी परम्पराओं, अपनी मान्यताओं और अपनी विशालता की ओर तेजी से लौटते समय चक्र और इस कारण भारत के अनादिकाल का सच सामने आने से कुछ राष्ट्र विघातक शक्तियां परेशान हैं, उनके सीने पर जैसे सांप लोट रहा है। ये राष्ट्र विघातक ताकतें चिंतित हैं कहीं भारत पुन: विश्व गुरु न बन जाए? ये चिंतित हैं कहीं सोने की चिडिय़ा का संबोधन भारत पुन: चरितार्थ न कर दे? यही वजह है कभी असहिष्णुता तो कभी जातिगत विद्वेष, कभी दलितों, पिछड़ों पर अत्याचार के आरोप हमारे देश और यहां के नागरिकों पर लगाए जा रहे हैं।
यह आरोप कितने खोखले, कितने झूठे और कितने उथले हैं, इसका प्रमाण है युगों-युगों से चली आ रही कुंभ स्नान की महान हिन्दू परम्परा। सदी के दूसरे महाकुंभ के पहले महाकाल की नगरी उज्जयनी के क्षिप्रा तट पर जो दृश्य दिखाई दिया वह उन राष्ट्र विघातक शक्तियों के षड्यंत्र को करारा जवाब कहा जा सकता है। समरसता का ऐसा अद्भुत उदाहरण भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कहीं दिखाई नहीं देता। न कोई ऊंच न कोई नीच न कोई अगड़ा न कोई पिछड़ा इसे कहते हैं समरसता, इसे कहते हैं सहिष्णुता, इसे कहते हैं एकता, इसे कहते हैं भारत की ताकत। सबके मुंह पर एक ही उद्घोष जय बाबा महाकाल सबकी एक ही इच्छा पवित्र क्षिप्रा के जल में एक डुबकी। कुंभ स्नान के बाद महाकाल के दर्शन, अवंतिका के अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन। इसे सिंहस्थ में आस्था की संज्ञा देने वालों को इसके साथ-साथ एक अन्य नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है और वह नजरिया होना चाहिए ''समरसता का महास्नान' वह समरसता जिसमें न कोई ब्राह्मण न कोई वैश्य, न कोई क्षत्रिय और न कोई शूद्र।
समरसता की इस अनूठी मिसाल ने इस बार धार्मिक परम्पराओं का भी हृदय परिवर्तन कर दिया। क्षिप्रा के तट पर जहां भारत के कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक के लोग समरस थे वहीं उससे भी एक कदम आगे बढ़कर नागा साधुओं और अखाड़ों ने गजब का धैर्य और शांति का परिचय दिया और स्वयं के स्नान से पूर्व तथा उनके लिए निर्धारित समय पर आमजनों को डुबकी लगाने की छूट इन नागा साधुओं ने दे दी। यहां भी साधुओं के साथ आम भक्तों के स्नान के समरस दृश्य ने सबको आश्चर्य चकित कर दिया। संभवत: नागा साधुओं के साथ आमजनों के स्नान का ऐसा दृश्य पहली बार उज्जैन में नया इतिहास रच गया।
इसके साथ ही समरसता के सामने एक बार पुन: रूढि़वादी परम्परा को भारतीय संस्कृति ने बौना साबित कर दिया। यह समरसता थी साधुओं के अखाड़ों में महिला सन्यासियों की। जो लोग भारत में कुछ मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश की रूढि़वादी परम्परा का मजाक बनाकर इस देश को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। वास्तव में भारत की युगों पुरानी अखाड़ा परम्परा ने महिला संन्यासियों को सम्मान देकर उन भारत विरोधी मानसिकता के मुंह पर करारा तमाचा मारा है। अद्भुत और आश्चर्यजनक था वह दृश्य जब संतों के साथ महिला संन्यासियों ने संतों के रथों पर सवार होकर क्षिप्रा तट पहुंचकर शाही स्नान किया। बात यहीं समाप्त नहीं होती भारतीय धर्म क्षेत्र में शैव और वैष्णव अखाड़ों ने एक ही समय पर कुंभ स्नान करके समरसता के भाव को धर्मक्षेत्र में भी सिद्ध कर दिया। न कोई तकरार न कोई विरोध केवल जय महाकाल और भक्तिरस के इन उदाहरणों को उन विघ्न संतोषी और देश तोड़ू ताकतों को गंभीरता से पढऩा चाहिए साथ ही इस पर मंथन और चिंतन करना चाहिए कि जो आरोप इस महान भारत भू पर वे लगाते हंै वो भरत भू तो न कभी पूर्वकाल में ऐसी थी न वर्तमान में है और न भविष्य में होगी। यह वही भारत देश है जहां सूर्यवंश के राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्री राम ने सबरी जैसी दलित महिला की कुटिया में पहुंचकर उसके द्वारा झूठे किए बेरों को खाकर समरसता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया था, इन्हीं श्री राम ने केवट को गले लगाया और जटायु जैसे पक्षी तक का उद्धार किया। उन्होंने भालुओं और बंदरों को सम्मान देकर त्रिलोकपति रावण का सर्वनाश किया। पूरी दुनिया में समरसता का ऐसा भाव कहीं देखने को नहीं मिलता।
समयचक्र के प्रवाह में कुछ कालखंड ऐसा जरूर आया जब मुगलों और अंग्रेजों ने अपनी तलवार और धूर्त नीतियों के कारण हिन्दुस्थान के समरस भाव में दरार डालने की कोशिश की और 'फूट डालो शासन करो' की नीति अपनाई। इसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। अब समयचक्र ने एक बार पुन: करवट बदली है। व्यवस्था परिवर्तन के बाद एक राष्ट्रवादी, हिन्दुत्ववादी और सद्विचारों वाला नेतृत्व देश की सत्ता पर आसीन हुआ है। निश्चित ही इस कारण से राष्ट्रविघातक शक्तियों में बेचैनी है। ऐसी ताकतें कभी शिक्षा, कभी साहित्य, कभी राजनीति तो कभी धर्म का मुखौटा लगाकर भारत को कमजोर करने उस पर असहिष्णुता, जातिगत, ऊंचनीच और सांप्रदायिकता जैसे आरोप लगाने का काम लगातार करते रहते हैं और इस देश के कुछ छद्म धर्म निरपेक्षतावादी और तथाकथित मीडिया उनके सुर में सुर मिलाता रहा है। लेकिन सिंहस्थ महाकुंभ जैसी महान गौरवशाली परम्पराएं इसका करारा जवाब हैं। यह सिद्ध कर देती हैं कि भारत जैसी समरसता पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। जय भारत जय जय हे भारत।