जमीन नामांतरण में अब पटवारी नहीं कर पाएंगे भ्रष्टाचार
शासन ने दिए राजस्व विभाग को आदेश, भ्रष्टाचार न हो इसके लिए बनाई योजना
ग्वालियर। जिले में कृषि भूमि से जुड़े हजारों ऐसे मामले हैं, जिनके नामांतरण का कार्य अधर में लटका हुआ है। पटवारी और तहसीलदारों की लापरवाही और मनमानी से किसान तो परेशान हो ही रहे हैं, वहीं नामांतरण न होने से उक्त जमीनों पर दबंगों द्वारा कब्जा करने का भी डर बना रहता है। पटवारी भ्रष्टाचार करने के बाद भी नामांतरण करने में ढील-पोल करते हैं। शासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए नामांतरण प्रक्रिया को सरल और जल्द करने के निर्देश कुछ दिन पहले ही राजस्व विभाग को दिए हैं। इसमें नामांतरण प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने और पटवारियों की मनमानी रोकने के लिए पहल करते हुए नई योजना बनाई है।
जानकारी में सामने आया है कि जिला पंजीयन विभाग से कृषि भूमि की रजिस्ट्री सीधे तहसीलदारों के ई-मेल पर भेजी जाएंगी। समय-सीमा में नामांतरण नहीं हुआ तो उक्त अधिकारी की जिम्मेदारी तय हो जाएगी। चूंकि नामांतरण का मामला राजस्व विभाग का रहता है तो मुद्रांक व पंजीयन विभाग रजिस्ट्री की सत्य प्रतिलिपि तहसीलदारों को ई-मेल पर भेजने की मदद करेगा। इससे कृषि भूमि के नामांतरण व बंटवारा प्रकरणों का जल्द से जल्द और समय-सीमा में निराकरण हो सकेगा।
जल्द शुरू होगी व्यवस्था
संबंधित विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि शासन के निर्देश पर इस नई योजना को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। वहीं एक सब रजिस्ट्रार की मानें तो इसके लिए ग्वालियर जिले के सभी तहसीलदारों से उनके ई-मेल आईडी लिए जा रहे हैं। उप पंजीयक कार्यालय में कृषि भूमि की रजिस्ट्री होने पर संबंधित तहसीलदार को रजिस्ट्री की कॉपी डाउनलोड कर ई-मेल पर भेजी जाएगी। इसके आधार पर तहसीलदार समय-सीमा में नामांतरण व बंटवारे की कार्रवाई कर सकेंगे।
भ्रष्टाचार रुकेगा, पटवारियों पर लगेगी लगाम
जमीनों के नामांतरण के मामले में सबसे ज्यादा पटवारी ही किसानों का शोषण करते हैं। भ्रष्टाचार बढ़ाने के जितने भी मामले हैं, उनमें नामांतरण का बहुत बड़ा योगदान है। बताया जाता है कि लोकायुक्त विभाग की भ्रष्टाचारियों की सूची में शीर्ष पर पटवारी ही हैं। पिछले एक साल में कुछ पटवारी नामांतरण के लिए रिश्वत मांगते हुए रंगे हाथों लोकायुक्त पुलिस ने पकड़े भी हैं।
ऐसे लटकाते हैं पटवारी नामांतरण के मामले
किसान को जमीन खरीदना हो या बंटवारा करना हो, तो नामांतरण करवाना पड़ता है। इसके लिए पटवारी के पास जाना होता है। यहीं से भ्रष्टाचार शुरू होता है। जमीन खरीदने के बाद नामांतरण के लिए रजिस्ट्री की फोटोकॉपी पटवारी को देना होती है। इसके बाद पटवारी नामांतरण पंजी में जमीन के नए मालिक की एन्ट्री करता है। फिर तहसीलदार के हस्ताक्षर से नामांतरण प्रक्रिया पूरी होती है। चूंकि सारा दारोमदार पटवारी पर है, इसलिए वे रिश्वत मांगने से नहीं चूकते। किसान को इसलिए जल्दी होती है कि बिना नामांतरण कराए क्रेडिट कार्ड, खाद, बीज या बैंक से ऋण जैसी सुविधा नहीं मिल पाती है।
तीन से चार माह लगते हैं नामांतरण में
कृषि भूमि के नामांतरण के लिए किसान सबसे पहले आवेदन देते हैं। ये आवेदन संबंधित पटवारी के पास आता है, तो उसमें खसरा और खतौनी की नई नकल के लिए कहा जाता है। आवेदन लेकर पटवारी संशोधन पंजी में नामांतरण दर्ज करते हैं। आवेदन तहसीलदार के पास जाते हैं। यहां से आदेश मिलने पर नामांतरण होता है। इसके बाद रिकार्ड दुरुस्त किया जाता है। अधिक आवेदन होने और काम की अधिकता के कारण नामांतरण में दो से तीन महीने लग रहे हैं।
इन्होंने कहा
नामांतरण का मामला राजस्व विभाग में आता है। फिलहाल हमारे पास ऐसे कोई आदेश नहीं आए हैं कि हमें कृषि भूमि की रजिस्ट्री तहसीलदारों को देना होगी।
के.एस. रावत
मुख्य पंजीयक,
ग्वालियर