उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का चेहरा
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का चेहरा
दिल्ली में टैंकर घोटाला मामले में एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने शीला दीक्षित को जिस दिन समन जारी किया, उसी दिन कांग्रेस ने परम्परा से हटकर शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया। कांग्रेस में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने की परम्परा नहीं रही। मुुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने पर उनके बचाव में शीला दीक्षित के नाम की घोषणा करने वाले कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने ये कह कर जवाब दिया कि भाजपा शासित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, अगर भाजपा इन तीनों मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे लेती है तो हम भी शीला की दावेदारी वापस ले लेंगे। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश में चुनाव में उतरने जा रही कांग्रेस की अपने चेहरे के बचाव में दी गई सफाई हास्यास्पद है।
यूं भी शीला दीक्षित सोनिया की पसंद हैं और कहा भी जाता है, संकट के समय शीला ही सोनिया की तारणहार बनीं। भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों के कथित भ्रष्टाचार के मामले में अब तक आरोप ही सामने आए हैं। इन मामलों में इन तीनों मुख्यमंत्रियों की संलिप्तता साबित भी नहीं हो पाई है। टैंकर घोटाले मेें एंटी करप्शन ब्यूरो का दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को समन जारी करना गंभीर विषय है। राजनीति को फिसलन भरी राह कहा जाता है जहां हर पड़ाव पर नैतिकता और भ्रष्टाचार से खुद को बचाना पहली शर्त है। और देश की जनता राजनेताओं से यही अपेक्षा करती है। ऐसे में कांग्रेस उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में क्या जवाब देगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि शीला को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में पीके फैक्टर ने भी अहम भूमिका निभाई है, चुनाव में ब्राह्मण चेहरा उतारने की सलाह उन प्रशांत कुमार की है जो कांग्रेस के राजनीतिक सलाहकार हैं। शीला दीक्षित को बतौर ब्राह्मण चेहरा घोषित कर कांग्रेस ने इस चुनाव में जातिवाद का जहर भी चुनाव से काफी पहले घोल दिया।
अनेकता में एकता का नारा देने वाली कांग्रेस का यह कदम समाज को टुकड़ों में बांटने की साजिश नहीं है? कांग्रेस पीके की सलाह पर चुनाव लड़े या फिर संगठन में फेरबदल कर चुनाव में उतरे यह उसका अंदरूनी मामला है, लेकिन चुनाव को लेकर वो जिस हवा के घोड़े पर सवारी कर रही है, वही उसके लिए और मुश्किलें खड़ी कर देगा। कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में मजबूत जड़ों वाली भाजपा से टक्कर लेना मुश्किल होगा, वहीं बहुजन समाज पार्टी और सपा जैसे क्षेत्रीय दल शीला दीक्षित के लिए बड़ी चुनौती होगी। वैसे भी थकी और बूढ़ी हो चुकीं शीला दीक्षित के लिए उप्र की राह आसान नहीं है। वैसे भी ्अठहत्तर साल की शीला दीक्षित को गांधी परिवार की निष्ठा का इनाम मिला है। प्रदेश में कांग्रेस अंतिम सांसें गिन रही है, इन हालात में शीला को पार्टी का चेहरा बनाया जाए या किसी और को, चमत्कार की उम्मीद करना बेमानी ही होगा।