पाक के खिलाफ भारत की कूटनीतिक मुहिम
भारत जैसा जिम्मेदार राष्ट्र आतंकवादियों को शरण और बढ़ावा देने वाले उद्दण्ड देश पाकिस्तान की तरह व्यवहार नहीं कर सकता, इसीलिए उसने उरी सेक्टर में हुई आतंकी घटना और पाकिस्तान की इस कायराना हरकत के खिलाफ कूटनीतिक मुहिम छेडऩे का फैसला किया। संतोषजनक बात यह है कि इसके अच्छे परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। इस सन्दर्भ में यह खबर भी हमारे लिए उत्साहवर्धक है कि अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव दो प्रभावशाली सांसदों ने पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने के लिए विधेयक पेश किया है। इस विधेयक में अमेरिकी सरकार से मांग की गई है कि वह पाकिस्तान जैसे दगाबाज देश को मिलने वाली तमाम सहायता पर रोक लगा दे।
इसके साथ ही यह भी कोई कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि कश्मीर मसले पर सामान्यत: पाकिस्तान का साथ देने वाले दो इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के चार सदस्य देशों (सऊदी अरब, बहरीन, कतर और यूएई) ने उरी में आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है। जाहिर है कि जिस वक्त आतंकवाद पूरी दुनिया की प्रमुख चिंता हो,पाकिस्तानी हुक्मरान अपने आपराधिक तौर-तरीकों पर अधिक समय तक पर्दा नहीं डाल सकते। यहां पर बीते सोमवार को पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस अनवर जहीर जमाली द्वारा यह कहते हुए अफसोस जताया जाना कि पाकिस्तान की सियासी पार्टियां अपने हित साधने के लिए ‘आतंकियों’ की मदद करती हैं, हमारे लिए दुनियां के सामने पाकिस्तान की हकीकत का खुलासा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्यों कि पूरी दुनियां ने उस देश के एक सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी के खुलेआम दिए गए इस बयान को सुना है।
इस स्थिति में भारत सरकार का यह आकलन गलत नहीं है कि पाकिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का यह एक अच्छा अवसर है। ऐसा हुआ तो वहां के सत्ता तंत्र के लिए ‘जैस ए मोहम्मद’ जैसे दहशत गर्द गुटों को पालना मुश्किल हो जाएगा। यह जगजाहिर है कि भारत की छवि एक शांतिप्रिय देश की है। उसका उद्देश्य किसी को बर्बाद करना नहीं बल्कि पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाना है। इसके लिए जो सबसे उपयुक्त तरीका समझा गया, भारत सरकार ने उसी को अपनाया है और उसके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। यही कारण है कि उरी हमले के बाद एनडीए सरकार ने देश में गुस्से के माहौल के बावजूद पूर्ण संयम से निर्णय लेकर उन पर चलने का फैसला किया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2001 में संसद पर हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि युद्ध जैसे फैसले कभी भी भावावेश में और एकतरफा नहीं लिए जाते। इसके तमाम संकेत हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने इसी सीख को अपना मार्ग दर्शक बनाया है। यही संकेत हैं कि विदेश मंत्रालय ने तुरंत सैन्य कार्रवाई से असहमति जताई। उसने राय दी कि फिलहाल दुनिया के सामने अपने पक्ष में माहौल बनाया जाना चाहिए। इस स्थिति में की जाने वाली जवाबी कार्रवाई के नफा-नुकसान का समग्र आकलन करने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए। अब सरकार ने जो फैसला लिया है, देश को इसके परिणामों की धीरज से प्रतीक्षा करना चाहिए।