इजराइल में लाउडस्पीकर पर अजान प्रतिबंधित
इजराइल में लाउडस्पीकर पर अजान प्रतिबंधित
सामान्यतया प्रत्येक देश की सरकार दुनिया के सभी धर्मों का आदर करती है। वह ऐसा कोई कानून नहीं बनाती है, जिससे दो धर्मों के बीच टकराव की स्थिति आ जाए। भारत के संविधान में तो धर्मनिरपेक्ष शब्द का उपयोग करके दुनिया के सभी धर्मों का आदर किया है। साथ ही हर देश की सरकार की यह भी अपेक्षा रहती है कि वह उस देश की सरकार द्वारा बनाए गए धर्मों का सम्मान करे। धर्म एक निजी मान्यता की वस्तु है, इसलिए कोई भी सरकार इसके आड़े नहीं आती है। सरकार की अपेक्षा रहती है कि प्रत्येक धर्म के धर्मावलंबी उस देश की सरकार के बनाए गए कानूनों का सम्मान करें। चूंकि धर्म एक निजी वस्तु है, इसलिए कोई भी सभ्य सरकार उसके आड़े नहीं आती है। इतना ही नहीं जहां किसी धर्म के अनुयाई अल्पसंख्या में होते हैं, उनकी सुरक्षा करना भी वह अपना धर्म समझती है।
राष्ट्रसंघ ने भी दुनिया के देशों के सम्मुख चार्टर के रूप में इस प्रकार का बंधन प्रस्तुत किया है, जिसे हर देश की सरकार ने सद्भावना के लिए इसे दुनिया में अपना दायित्व स्वीकार किया है। धर्म को लेकर विवाद भी नहीं, लेकिन कितने युद्ध हुए हैं, इससे इतिहास भरा पड़ा है। आज भी एक ही देश के दो धर्मों के भिन्न-भिन्न वर्ग आपस में टकरा जाते हैं। दो धर्म ही नहीं, एक ही धर्म के दो भिन्न आस्था धराने वालों में भी सदा सर्वदा टकराव होता रहता है। इसलिए सरकार अपनी पुलिस एवं कानून द्वारा उन्हें रोकने के हमेशा प्रयास करती रहती है। हम भारतीय तो इस प्रकार के टकराव के अनुभवी हंै। इसलिए विभिन्न धर्मों के त्योहारों पर सरकार हमेशा सजग रहती है। इस टकराव के कारण विश्व में साम्प्रदायिक दंगों का दिल दहला देने वाला इतिहास बन गया है। समझदारी और भाईचारे के इस युग में भी इजराईल एक ऐसा देश है,जो अपने धर्म के नियमों के प्रति किसी प्रकार का कोई भी समझौता करने पर दस बार विचार करता है। वह इस बात को देखता है कि इससे उसकी आस्था अथवा तो उसके अपने धर्म का कहीं अनादर तो नहीं हो रहा है।
इजराइल की यहूदी जनता ने अपनी स्थापना से लगाकर आज तक समय-समय पर विश्व के दो बड़े समुदाय ईसाई और मुसलमानों द्वारा अनेक बार अपने देश के ही नहीं, बल्कि अपने धर्म और आस्था के बनाए हुए नियमों का विरोध करते हुए देखा है। भूतकाल की इस कड़ुवाहट को यहूदी जनता भूली नहीं है, इसलिए अब अपने धार्मिक और राजनीतिक देश इजराइल में वह ऐसा कोई दिन नहीं देखना चाहती है, जब उसके अनुयाइयों की आस्था का कोई विरोध करे। भूतकाल की इस कड़ुवाहट ने उन्हें बहुत हद तक जिद्दी और साथ ही जागरूक भी बना दिया है। इसका मूल कारण है यहूदियत को कोई बुरा भला न कह सके। भूतकाल के कटु अनुभवों को वह भुला नहीं पाया है, इसलिए अपने धर्म के विरोधियों से वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहता है। इजराइल धार्मिक देश है। वह अपने अनुयाइयों की आस्था पर चोट करने वालों को क्षमा करने में विश्वास नहीं रखता है। यही कारण है कि वह अन्य धर्म के अनुयाइयों को कोई छूट नहीं देना चाहता, जो उसके नागरिकों की आलोचना अथवा तो अवहेलना करके उनका अनादर करने का प्रयास करे। स्वयं इजराइल सरकार अपनी जनता की संवेदनाओं से भली प्रकार परिचित है, इसलिए वह ऐसा कुछ भी नहीं करने देना चाहती, जिससे यहूदी जनता अपमानित होकर अपनी धार्मिक भावना की रक्षा हेतु किसी प्रकार की गड़बड़ी कर सके। उत्तेजित जनता कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह अपने प्रशासन को चुस्त और सक्रीय रखने की दृष्टि से इस प्रकार के कटु कदम उठाने के लिए भी कटिबद्ध रहती है।
सामान्यतया हर देश की सरकार अपनी जनता की धार्मिक आस्था को सम्मान देते हुए और अपने नागरिकों की भावना को देखते हुए इस प्रकार के कदम उठाने हेतु अनचाहे निर्णय करती है, जिससे टकराव पैदा न हो और समाज में शांति बनी रहे। पाठकों को यह बतलाने की आवश्यकता नहीं कि इजराइल सरकार द्वारा प्रारंभ से ही सार्वजनिक स्थानों पर मस्जिदों की मीनारों से माइक पर दी जाने वाली अजान को प्रसारित करने का आदेश प्रतिबंधित है। अजान की तरह ही चर्च की घंटियां जो इसाइयों को चर्च के समय की जानकारी प्रदान करती हैं, इसलिए उन पर भी कड़ा प्रतिबंध है। संक्षेप में कहा जाए तो इजराइल में न तो सार्वजनिक स्थानों पर अजान की पुकार हो सकती है और न ही चर्च की घंटियां सुनी जा सकती हैं। उपरोक्त प्रतिबंध केवल ढीला ढाला कानून नहीं, बल्कि कड़ाई से पालन किया जाने वाला इन धार्मिक स्थलों के लिए सख्ती से पालन किए जाने संबंधी आदेश है। इस मामले में इजराइल सरकार के अपने निर्णय हैं, जिससे वहां का पुलिस प्रशासन एवं सामान्य जीवन के अन्य सरकारी दफ्तर इसका सख्ती से पालन करते हैं। परिणाम स्वरूप न तो इजराइल में अजान सुनाई पड़ती है और न ही चर्च की घंटियों का सुनने का कोई अवसर आता है।
क्रिया की प्रतिक्रिया होना तो स्वाभाविक ही है, इसलिए मुस्लिम एवं ईसाई देशों में वहां की स्थानीय जनता इजराइल के इस कानून का विरोध करती है। यह विरोध कभी-कभी तो इतना हो जाता है कि दो गुटों का संघर्ष बन जाता है। इजराइल सरकार का यह कहना है कि अन्य धर्मों के प्रचार प्रसार पर इजराइल में कड़ा प्रतिबंध है। वे जब सरकारी तौर पर अन्य धर्मों को मान्यता ही नहीं देते हैं तो फिर उनको इजराइल में अपनी कोई भी धार्मिक क्रिया को सार्वजनिक तौर पर क्रियान्वित करने की आज्ञा किस प्रकार दी जा सकती है? इजराइल ने अपने संविधान में स्पष्ट रूप से यहूदियत को अपना राष्ट्रीय धर्म ही नहीं घोषित किया है, बल्कि अन्य धर्मों को वहां प्रचार प्रसार करने का कोई कानूनी अथवा नैतिक अधिकार भी नहीं दिया है, इसलिए यहूदी देश में वे कोई ऐसे कृत्य अथवा तो क्रिया को स्थान नहीं दे सकते हैं, जिससे अन्य धर्म का प्रचार प्रसार हो। इसलिए न तो मुस्लिमों को सार्वजनिक रूप से अजान देने की छूट है और न ही ईसाइयों को चर्च के घंटे बजाने का आदेश। केवल यह दो ही धर्म नहीं, बल्कि जितने भी अन्य धर्म हैं, उन्हें सार्वजनिक तौर पर अपने प्रचार प्रसार अथवा तो किसी भी अन्य धार्मिक क्रिया को क्रियान्वित करने का भी अधिकार नहीं है।
13 नवम्बर 16 को इजराइल की संसद में इजराइल और पेलेस्टाइन अधिकृत मस्जिदों में लाउड स्पीकर के द्वारा अजान देने पर प्रतिबंध लगाए जाने का एक बिल प्रस्तुत किया गया था। मुसलमानों के लिए चिंता की बात यह है कि इन मस्जिदों में मस्जिदें अक्सा जो सबसे पहली और पवित्र मस्जिद है, उसका भी समावेश किया गया है। प्रस्तुत बिल में यह भी कहा गया था कि दुनिया की सबसे पहली और पवित्रता में जो सर्वश्रेष्ठ मानी गई है, उसके आसपास यहूदी रहते हैं। इन यहूदियों को अजान से परेशानी होती है, इसलिए यहूदियों की ओर से सतत् उस पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की जा रही है, कोई अप्रिय घटना घटने से पूर्व सावधानी की आवश्यकता है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन याहू ने इसे सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ बिना किसी भेदभाव के सामान्य जनता को परेशानी से बचाने के लिए इजराइल सरकार की जिम्मेदारी बतलाया है। इस संबंध में पेलेस्टाइनियों का कहना है कि इजराइल सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वे पेलेस्टाइनियों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करें। अजान को अस्थाई तौर पर भी रोकने का उन्हें अधिकार नहीं है। यहूदियों का आग्रह है कि उन्हें स्थाई रूप से इसे रोकना होगा।
पेलेस्टाइनी सुप्रीम इस्लामी कौंसिल के अनुसार यदि अजान से यहूदियों के आराम में बाधा पड़ती है तो क्या पेलेस्टाइनियों पर बमबारी और उनका कत्लेआम यहूदी जनता को आराम और चैन पहुंचाने के लिए किया जाता है? मीडिया रपट के अनुसार इजराइली संसद के अरबी समूह से संबंध रखने वाले वरिष्ठ सदस्य मसूद गनाइम का कहना है कि पेलेस्टाइन की मस्जिद में लाउड स्पीकर द्वारा अजान पर प्रतिबंध के इजराइली कानून के विरुद्ध प्रदर्शन जारी है। पिछले रविवार को अरब पोलेटिकल एलायंस के मंच से निर्वाचित सदस्य मसूद बनाइम ने बतलाया है कि वे इस संबंध में कानूनी निष्णांतों से बातचीत कर रहे हैं। कुदस प्रेस के अनुसार उक्त बयान ऐसे समय में आया है, जब इस मुद्दे पर इजराइल की संसद में बहस जारी है। उक्त बहस अजहरीदिया नामक यहूदी पंथ की मांग पर की जा रही है। मसूद बनाइम का मानना है कि संसद की संसदीय समिति ने इसे पास कर दिया है। अब इस पर मतदान होगा। यह भी बता दें कि 1948 के पेलेस्टाइन के अधिकृत नगरों की मस्जिदों में लाउड स्पीकर पर अजान देने संबंधी प्रस्ताव को पास कर लिया था, उसके पश्चात की इसकी कड़ी प्रतिक्रिया स्वरूप उक्त घटना सामने आ रही है।