चन्द्र ग्रहण के चलते पहली बार दोपहर में हुई गंगा आरती, सूतक काल में मंदिरों के कपाट बंद
वाराणसी। श्रावणी पूर्णिमा और रक्षाबंधन पर्व पर सोमवार को चन्द्रग्रहण के चलते अपरान्ह 1:57 बजे के बाद सूतक काल शुरू होते ही 9 घंटे पहले नगर के छोटे-बड़े मंदिरों के कपाट बंद हो गये। विश्वप्रसिद्ध काशी की गंगा आरती भी अपने दो दशक के इतिहास में पहली बार दोपहर में हुई।
गंगा सेवा निधि की ओर से दशाश्वमेधघाट पर दोपहर 12 बजे और गंगोत्री सेवा निधि की प्राचीन शीतलाघाट दशाश्वमेध पर दोपहर 12.30 बजे हुई। उधर श्री काशी विश्वनाथ दरबार में चंद्रग्रहण का सूतक लगने के साथ ही बाबा का गर्भ गृह दोपहर 1:57 बजे बंद कर दिया गया। इस दौरान मंदिर के पुजारी गर्भगृह में मौजूद रहे। बाबा की सप्तऋषि आरती 2:30 से 3:30 के बीच पूरी की गई।
मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एसएन त्रिपाठी ने बताया कि सावन के सोमवार को होने वाले विशेष श्रृंगार झूलनोत्सव साढ़े तीन से साढ़े चार बजे तक सजाया गया जिसमें बाबा विश्वनाथ ने परिवार सहित झूले में झांकी दर्शन दिए। साढ़े चार बजते ही बाबा विश्वनाथ का मंदिर भी बंद कर दिया गया। बाबा विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित श्री अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी ने बताया कि माता के कपाट साढ़े 3 बजे ही बंद कर दिए गए। परिसर स्थित अक्षयवट हनुमान मंदिर शाम 4 बजे बंद हुआ। इसी क्रम में शनिदेव मंदिर को भी 4 बजे बंद कर दिया गया। श्री संकटमोचन दरबार दोपहर के भोग और आरती के बाद से ही बन्द कर दिया गया। सभी देवालय मंगलवार की सुबह अपने निर्धारित समय से मंगला आरती के साथ खुलेंगे।
गौरतलब हो कि चंद्रग्रहण भारत सहित पूरे एशिया, यूरोप और अफ्रीका में देखा जा सकेगा। चंद्र ग्रहण रात्रि 10:52 से शुरू होकर 12:22 तक रहेगा। चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पूर्व सूतक लग जाएगा। इससे पहले भद्रा का प्रभाव रहेगा, चंद्रग्रहण पूर्ण नहीं खंडग्रास है।
मान्यता है कि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इसलिए यह अवधि ऋणात्मक मानी जाती है। इस दौरान अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जो एंजाइम सिस्टम को प्रभावित करती हैं। इसलिए ग्रहण के दौरान सावधानी बरतने की जरूरत होती है। ग्रहण भारत के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप के अधिकांश भाग, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग, प्रशान्त महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर और अंटकार्टिका में दिखेगा।