स्टेशन पर यात्री को नहीं मिलता प्राथमिक इलाज

स्टेशन पर यात्री को नहीं मिलता प्राथमिक इलाज
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ट्रेनों में बढ़े यात्रियों की तबियत बिगड़ने के मामले, भेजते हैं जयारोग्य

ग्वालियर|
रेलवे स्टेशन या ट्रेन में अगर कोई यात्री घायल हो जाए या फिर बीमार हो जाए तो उसे तत्काल इलाज नहीं मिल सकता है। क्योंकि ग्वालियर में रेलवे का अस्पताल स्टेशन से करीब एक किलो मीटर दूर है। जब तक रेलवे के अस्पताल से चिकित्सक आते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इस कारण स्टेशन पर बीमार या हादसे में घायल होेने वाले यात्रियों को उपचार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है, या फिर उन्हें जयारोग्य अस्पताल भेजा जाता है। अगर ग्वालियर रेलवे पर 24 घंटे चिकित्सकों की सुविधा या फिर छोटी ओपीडी बना दी जाए तो रेल यात्रियों को तुरंत इलाज मिल सकता है। इस संबंध में जागरूक रेल यात्रियों ने रेलवे को अस्पताल नजदीक बनाने का सुझाव भी दिया है। गर्मी बढ़ने के साथ ही लंबी दूरी की ट्रेनों में यात्रियों के बीमार होने के केस बढ़ रहे हैं। रोजाना औसतन दो से तीन डॉक्टर कॉल झांसी मंडल के कंट्रोल रूम में आ रहा है। इसके बावजूद अक्सर चिकित्सक समय पर स्टेशन नहीं पहुंच पा रहे हैं। ज्यादातर चिकित्सक यात्रियों को अटेंड भी करते है, लेकिन उनके जाते ही फिर किसी यात्री की तबियत खराब होती है, तो चिकित्सक समय पर नहीं पहुंच पाते है।

जयारोग्य अस्पताल पहुंचने में लगते हंै 30 मिनट: जब भी किसी यात्री की हालत काफी गंभीर होती है, तो रेलवे अधिकारी उसे इलाज के लिए सीधे ग्वालियर जयारोग्य अस्पताल में भेजते है। लेकिन अस्पताल पहुंचने में लगभग 30 मिनट लगते है, जिसके चलते कई बार यात्री की जान तक चली जाती है।

स्टेशन पर मिलना चाहिए प्राथमिक इलाज: ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर सूचना देने पर चिकित्सक यात्रियों का इलाज करने तो पहुंचते हैं, लेकिन गंभीर यात्रियों को प्राथमिक इलाज नहीं दे पाते हैं, जिसके चलते गंभीर यात्रियों को इलाज के लिए उन्हें जयारोग्य अस्पताल ही भेजना पड़ता है।
एक किलोमीटर दूर रेलवे अस्पताल: ग्वालियर रेलवे स्टेशन से अस्पताल दो किलोमीटर दूर रेलवे कालोनी में है। स्टेशन और रेलवे के अस्पताल के बीच की सड़क पर सुबह से देर रात तक यातायात का इतनी जबरदस्त भीड़ रहती है कि 15 से 20 मिनट रास्ते में ही लग जाते हैं।

स्टेशन पर समय पर नहीं आती एम्बुलेंस
ग्वालियर स्टेशन पर कई बार यात्री किसी घटना के शिकार होते है, तो स्टेशन पर समय पर एम्बुलेंस नहीं पहुंचती है। जिसके चलते कई बार यात्रियों को आॅटो कर इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। अभी बीते दिनों एक यात्री के पैर में चोट लगी थी, लेकिन सूचना देने के बाद भी 108 एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंची।

रेलवे अधिकारियों का पूरा ध्यान
मरीजों की चिकित्सा सुविधा को लेकर रेलवे का दोहरा मापदण्ड है। अस्पताल में रेल कर्मियों के लिए सामान्य और अधिकारियों के लिए वीआईपी ट्रीटमेंट की सुविधा है। बीते दो माह पहले ही अस्पताल में जांच शिविर का आयोजन किया गया था। इसमें रेल कर्मियों और अधिकारियों की जांच का पूरा सिस्टम ही अलग रखा गया। बताया गया कि रेल कर्मियों की जांच पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया, इससे रेल कर्मियों में असंतोष व्याप्त है।

चार स्तर पर होती है बात
यात्रियों की तबियत बिगड़ने पर चार स्तर पर बात होती है उसके बाद ही चिकित्सक मरीज के उपचार के लिए पहुंचते हैं। यात्री की तबियत खराब होने पर टीटीई को खबर दी जाती है। टीटीई करीब के सबसे बड़े स्टेशन के कंट्रोल को सूचना देता है। उसके बाद कंट्रोल कमशर््िायल कंट्रोल को खबर देता है कि किस ट्रेन के किस कोच में यात्री की तबियत खराब हुई है और उसे क्या हुआ है। उसके बाद कमशर््िायल कंट्रोल उस स्टेशन के चिकित्सक को सूचना देता है।
चिकित्सक नहीं पहुंचते समय पर
कई बार यात्री की तबियत बिगड़ने पर टीटीई द्वारा समय पर सूचना दी जाती है, लेकिन ग्वालियर रेलवे स्टेशन से अस्पताल दूर होने के कारण चिकित्सक समय पर नहीं पहुंच पाते हैं। साथ ही मरीज और उसके रिश्तेदार यही सोचते हैं कि स्टेशन में गाड़ी पहुंचने के पहले चिकित्सक मौजूद रहेंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। कई बार तो आधा आधा घंटे इंतजार करने के बाद चिकित्सक आते हैं। इसी वजह से विवाद की स्थिति पैदा होती है।

इनका कहना है
रेलवे कर्मचारियों का तो ठीक से इलाज नहीं मिल पाता है, तो यात्रियों को इलाज कैसे मिलेगा। स्टेशन पर एक चिकित्सक को कॉन्ट्रेक्ट बेस पर रखा भी है, लेकिन कोई फायदा नहीं है।

अशोक मिश्रा
सेवा निवृत उपस्टेशन वाणिज्य प्रबंधक


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