ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस की आस पर बसपा का कुहासा

ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस की आस पर बसपा का कुहासा
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भिण्ड- दतिया से कांग्रेस नेता देवाशीष जरारिया के मैदान में आने से समीकरण गड़बडा़एं

ग्वालियर। लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी सरगर्मी दिनों दिन जोर पकड़ती जा रही है। नामांकन भरने का सिलसिला चल रहा है। भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन पर बसपा की पैनी नजर थी। भाजपा - कांग्रेस के उम्मीदवारों के ऐलान के बाद बसपा ने अंचल की ग्वालियर, भिण्ड-दतिया, श्योपुर- मुरैना व गुना-शिवपुरी सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक और संघर्षपूर्ण बना दिया है। भाजपा ने 18 वीं लोकसभा के लिए ग्वालियर से पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाह, भिण्ड- दतिया से सांसद संध्या राय, गुना- शिवपुरी से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व श्योपुर -मुरैना सीट से पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है। भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा के करीब एक माह के अंतराल के बाद कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले। सबसे पहले दतिया- भिण्ड सीट से भाण्डेर विधायक फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा। शिवपुरी- गुना से यादवेन्द्र सिंह यादव, श्योपुर-मुरैना से पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू और ग्वालियर सीट से पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को मैदान में उतारा है। बसपा की भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवार चयन पर पैनी नजर थी और उनकी घोषण का इंतजार था। भाजपा- कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने आते ही बसपा ने अपनी जोड़ तोड़ का जाल फैलाया और श्योपुर - मुरैना से कभी भाजपा के करीबी रहे और कांग्रेस से टिकट के लिए प्रयास कर चुके उद्योगपति रमेश चंद्र गर्ग को मैदान में उतार सभी को चौंकाया तो ग्वालियर से कांग्रेस नेता कल्याण सिंह कंषाना को टिकट देकर एक और धमाका कर दिया । शिवपुरी- गुना से धनीराम चौधरी को उम्मीदवार बनाया। अंचल की बची दतिया- भिण्ड सीट को लेकर बसपा पर सभी की निगाहें केन्द्रित थीं। बसपा ने यहां भी पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे देवाशीष जरारिया को बुधवार को बसपा सुप्रीमो मायावती के समक्ष बसपा में शामिल कराकर दतिया- भिण्ड सीट से उम्मीदवारी घोषित कर अपने इरादे साफ कर दिए।

भाजपा-कांग्रेस में होता रहा है मुकाबला

अंचल की 4 लोकसभा के चुनावी गुणाभाग पर नजर डालें तो शिवपुरी- गुना सीट पर भाजपा- कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा है। इस बार भी भाजपा के ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस के राव यादवेन्द्र सिंह के बीच ही मुकाबला है। बसपा के धनीराम चौधरी कितना मुकाबला करेंंगे, यह क्षेत्र की जनता अच्छी तरह जानती है। यहां पिछले लोकसभा चुनावों में बसपा को सर्वाधिक मत 2019 में 37530 मिले थे। ग्वालियर लोकसभा सीट पर भी बसपा का उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं रहा । यहां 2019 में बसपा को 44677, वर्ष 2014 में 68,196, मत,वर्ष 2009 में 76,481 मत मिले थे। ग्वालियर सीट के पिछले चुनावी परिणाम बताते हैं कि यहां भी भाजपा- कांग्रेस के बीच ही चुनावी टक्कर होती रही है। पिछले चुनाव में यहां भाजपा के विवेक शेजवलकर 1,46, 842 मतों से चुनाव जीते थे। शेजवलकर को 627250 वोट व कांग्रेस के अशोक सिंह को 460408 मत और बसपा की ममता कुशवाह को 44, 677 वोट मिले थे। इस बार भाजपा ने पूर्व विधायक भारत सिंह कुशवाहा को तो कांग्रेस ने भी पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को चुनाव मैदानमें उतारा है।

नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कुशवाहा कांग्रेस के साहब सिंह गुर्जर और पाठक भाजपा के नारायण सिंह कुशवाहा से नजदीकी मुकाबले में हार गए थे। ग्वालियर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली ग्वालियर ग्रामीण व पोहरी सीट पर ही बसपा कुछ टक्कर ले पाई थी। शेष 6 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं ने उसके उम्मीदवारों को तवज्जो नहीं दी थी। इस सीट पर वर्ष 98 व 99 में अवश्य बसपा के फूल सिंह बरैया सवा लाख से अधिक वोट हासिल कर चुके थे। इस बार बसपा ने कांग्रेस नेता कल्याण सिंह कंषाना को मैदान में उतार दिया है। कल्याण सिंह के भाई केदार सिंह कंषाना बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे ।उन्होंने क्षेत्र में अच्छी तैयारी भी की थी ,लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। अब बसपा ने कांग्रेस नेता को ही मैदान में उतार कांग्रेस उम्मीदवार के लिए परेशानी पैदा कर दी है। श्योपुर- मुरैना सीट पर भाजपा ने सभी कयासों से हटकर पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर को टिकट दिया तो कांग्रेस ने कुछ देर से ही सही भाजपा से पूर्व में सुमावली सीट से विधायक रहे सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू को मैदान में उतारकर मुकाबले को संघर्षपूर्ण व रोचक बना दिया। नीटू के पिताश्री गजराज सिंह सिकरवार भी सुमावली से विधायक रहे हैं और बड़े भाई सतीश सिकरवार ग्वालियर पूर्व से विधायक व भाभी शोभा सिकरवार ग्वालियर की महापौर हैं। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के नरेन्द्र सिंह तोमर 113981 मतों से विजयी हुए थे। वह बीते विधानसभा चुनाव में दिमनी सीट से विधायक चुने गए और अभी मप्र विधानसभा के अध्यक्ष हैं। मुरैना लोकसभा सीट पर बसपा का ठीकठाक प्रदर्शन रहा है।

2019 में बसपा को 129380 मत ,वर्ष 2014 में 242586 मत और 2009 में 14273 वोट मिल चुके हैं। नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में अंबाह को छोडक़र शेष 7 विधानसभा क्षेत्रों में उसके उम्मीदवारों का अच्छा प्रदर्शन रहा और करीब दो लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। बसपा ने इन्हीं मतों को देखते हुए यहां अपनी रणनीति के तहत अब अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा है। बसपा ने उद्योगपति रमेश गर्ग को टिकट देकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है। दतिया- भिण्ड सीट से भाजपा ने अपनी सांसद संध्या राय पर ही विश्वास व्यक्त कर फिर मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने विधायक फूलसिंह बरैया को भाजपा के गढ़ को ढहाने का जिम्मा दिया है।पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस के देवाशीष को 327809मत मिले थे और वह संध्या राय से 199885 वोटों से हारे थे। बसपा को 66623मत ही मिले थे। नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवारों का भिण्ड, लहार व मेहगांव सीट पर प्रदर्शन ठीक रहा था। बसपा ने अब यहां से कांग्रेस नेता देवाशीष जरारिया को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। देवाशीष कांग्रेस से लोकसभा टिकट के दावेदार थे और जब कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया तो उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। राजनीतिक गलियारे में तभी से आटकलें लगाई जा रहीं थीं कि जरारिया बसपा से मैदान में आ सकते हैं।

ग्वालियर-चंबल संभाग की 4 लोकसभा सीटों शिवपुरी-गुना, ग्वालियर, दतिया- भिण्ड, श्योपुर- मुरैना में 7 मई को मतदान होना है। गुना-शिवपुरी सीट पर जहां भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी लडा़ई के स्पष्ट तस्वीर सामने है। वहीं ग्वालियर, दतिया- भिण्ड, श्योपुर- मुरैना सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में मिले वोटों और नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बढ़त के आधार पर कांग्रेस इन तीन सीटों पर अपनी संभावनाएं मानकर चल रही है और उसी हिसाब से उसने अपने उम्मीदवार भी मैदान में उतारे हैं। कांग्रेस ने इन सीटों के लिए अपनी रणनीति बनाकर फोकस भी किया है।लेकिन अब बसपा ने कांग्रेस के घर में ही सेंध लेकर कांग्रेसियों को टिकट देकर कांग्रेस की आस पर कुहासा लगा दिया है। आगामी 4 जून को परिणाम आने पर साफ होगा कि भाजपा अपनी परंपरागत सीटों को बचाए रखती है या फिर कांग्रेस की आस पूरी होती है और बसपा का हाथी अंचल में कितना चलता है और किसकी राह का रोढ़ा बनता है।

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