महाकुंभ में बौद्ध धर्म की अनूठी झलक: सनातन और बौद्ध परंपराओं का अद्भुत संगम...
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बौद्ध और सनातन परंपराओं के अद्भुत संगम की गूंज: महाकुंभ मेला...आध्यात्मिकता और सनातन परंपराओं का सबसे बड़ा संगम माना जाता है। वहां स्वदेश की टीम को कुछ ऐसा देखने और सुनने को मिला जिसकी अधिक से अधिक बात होनी चाहिए।
जैसे ही हमारी टीम मेले के विभिन्न शिविरों की पड़ताल कर रही थी, अचानक हमारी नजर एक शिविर के बाहर भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा पर पड़ी। यह नज़ारा चौंकाने वाला था क्योंकि महाकुंभ को हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
लेकिन इस बार मेले में बौद्ध धर्म के शिविर की उपस्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। स्वदेश टीम ने जब इस शिविर के अंदर जाकर वहां के अनुयायियों और गुरुओं से बातचीत की तो जो खुलासे हुए, वे आश्चर्यजनक और गहरी विचारधारा से जुड़े लगे।
आखिर बौद्ध धर्म का यह शिविर महाकुंभ में क्या संदेश दे रहा है? भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा यहां क्यों स्थापित की गई? इन सवालों के जवाब और कई अनसुने राज़ जानने के लिए पढ़ें हमारी विशेष रिपोर्ट, जिसमें आपको मिलेगा इस रहस्यमयी घटनाक्रम का पूरा विश्लेषण।
जैसे ही हम शिविर के अंदर पहुंचे हमें सनातन धर्म और बौद्ध संस्कृति की समानांतर उपस्थिति देखने को मिली। शिविर के भीतर भगवान शिव, गणेश और विष्णु जी के साथ-साथ दलाई लामा और डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें भी सजी हुई थीं जो दोनों परंपराओं के सामंजस्य को दर्शा रही थीं।
गेशे लामा जी के विचार
शिविर के भीतर गेशे लामा जी की उपस्थिति ने माहौल को और भी आध्यात्मिक बना दिया। वे हिमालयन बौद्ध सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष हैं और बौद्ध दर्शन के गहन ज्ञाता भी। जब टीम ने उनसे संवाद किया और विभिन्न विषयों पर चर्चा की तो उन्होंने बड़े ही सहज और विचारशील अंदाज में हर प्रश्न का उत्तर दिया, जिससे बौद्ध संस्कृति और उसके मूल सिद्धांतों को लेकर नई समझ विकसित हुई।
पहला प्रश्न : बौद्ध धर्म और सनातन धर्म के बीच क्या समानताएँ हैं और किस प्रकार ये एक-दूसरे के पूरक या सहयोगी माने जा सकते हैं?
उत्तर: शिविर में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की उपस्थिति के साथ-साथ नालंदा विश्वविद्यालय के महान आचार्यों और प्रोफेसरों, नागार्जुन और महायान बौद्ध धर्म के वज्रपाणि देवता की भी तस्वीरें मौजूद हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि बौद्ध धर्म और सनातन धर्म एक-दूसरे के पूरक हैं।
दोनों धर्मों में देवी-देवताओं की समानता देखी जा सकती है। बौद्ध परंपरा में भी गणेश जी और सरस्वती माता की मान्यता है। जहां बौद्ध धर्म में आर्य अष्टांगिक मार्ग के अनुसरण से निर्वाण और ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है वहीं सनातन धर्म में कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्ग को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है।
गेशे लामा जी का कहना है कि बौद्ध धर्म की जड़ें सनातन धर्म में ही निहित हैं। यदि भारत को आगे बढ़ाना है और उसे पुनः विश्वगुरु बनाना है तो सनातन धर्म को संरक्षित और समृद्ध करना आवश्यक है। जब दुनिया सनातन धर्म और इसकी संस्कृति को अपनाएगी तब भारत की आध्यात्मिक विरासत को नई ऊंचाइयां मिलेंगी।
प्रश्न: आज के युवा बौद्ध धर्म को सनातन धर्म से अलग क्यों मानते हैं? कई बार वे विरोध प्रदर्शन तक करने के लिए क्यों तत्पर हो जाते हैं?
उत्तर: उन्होंने कहा कि जो लोग बौद्ध धर्म के वास्तविक तथ्यों से परिचित हैं, वे इसे सनातन धर्म से अलग नहीं मानते। आज के युवाओं के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने धर्म और परंपराओं का गहन अध्ययन करें और उनकी सही समझ विकसित करें। जब वे ज्ञान और तथ्यों के आधार पर अपने इतिहास और आध्यात्मिक मूल्यों को समझेंगे तो टकराव या विरोध की भावना खत्म कर देगे। युवा भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की दिशा में योगदान दे सकेंगे।
प्रश्न: कहा जाता है कि राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान आप कार सेवक थे। क्या यह सच है?
उत्तर: यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे कार सेवा करने का अवसर मिला। उस समय मैं कर्नाटक में एक विश्व विद्यालय में बौद्ध दर्शन का अध्ययन कर रहा था। अशोक सिंघल जी के साथ मिलकर मैंने कार सेवा में भाग लिया। हमारा विश्वास था कि भारत को विश्वगुरु बनाने का मार्ग सभी धर्मों को साथ लेकर चलने से ही प्रशस्त होगा। यह तभी संभव होगा जब हम एक-दूसरे के साथ समन्वय और सहयोग से आगे बढ़ेंगे।
सनातन और बौद्ध परंपराओं का एक नया दृष्टिकोण
महाकुंभ में बौद्ध धर्म की उपस्थिति न केवल आध्यात्मिक विविधता को दर्शाती है बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि सनातन धर्म और बौद्ध संस्कृति सदियों से एक-दूसरे के साथ जुड़े रहे हैं। गेशे लामा जी के विचारों और शिविर के अनुभवों से यह स्पष्ट होता है कि धर्मों के बीच समन्वय और आपसी समझ ही भारत को उसकी आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
आज के युवाओं को धर्म के वास्तविक तथ्यों को जानकर टकराव के बजाय समन्वय की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। भारत को विश्वगुरु बनाने का लक्ष्य केवल तभी पूरा होगा जब हम सभी धर्मों को साथ लेकर चलेंगे और अपनी समृद्ध परंपराओं को संरक्षित करेंगे। महाकुंभ में बौद्ध धर्म का यह संदेश एक नई सोच और एकता की ओर संकेत करता है जो भारत की आध्यात्मिक शक्ति को और मजबूत करेगा।