रतलाम । भारतीय संस्कृति का मुख्य त्यौहार दीपावली पर्व नजदीक है लेकिन बाजार में खरीदी पर महंगाई का असर स्पष्ट नजर आ रहा है। दुकानों पर भीड़ जो ज्यौहारों के दिनों में नजर आती थी अब ऐसी भीड़ दुकानों पर काफी कम दिखाई दे रही है। बाजार में कपड़े की दुकानों, इलेक्ट्रानिक दुकानों पर जो भीड़ त्यौहार के दिनों में नजर आती थी वह इस बार नहीं है और न ही रेडीमेड और अन्य प्रमुख दुकानों पर भीड़ दिखाई दे रही है। वाहन खरीदी पर भी महंगाई का असर नजर आ रहा है। दशहरे से दीपावली तक रंगाई-पुताई भी इस बार कहीं नजर नहीं आयी। केवल पांच प्रतिशत मकानों और दुकानों पर ही रंगाई-पुताई देखने को मिली। इसका कारण भी रंगों का महंगा होना और मजदूरी भी अत्यधिक होना बताया जा रहा है। मावे की मिठाई सात सौ रुपये किलो तक बिक रही है और मावा भी दो सौ से सवा दो सौ के बीच बिक रहा है। मावे में मिलावट की खबर से अब लोग मावे की मिठाई खाने में कतराने लगे हैं और वे घर में बनाई हुई बेसन की व अन्य मिठाइयां अधिक पसन्द करते हैं। गरीबों के लिये तो यह त्यौहार काफी महंगा साबित हो रहा है। उन लोगों के लिये दियों में तेल डालना भी मुश्किल लग रहा है। गैस सिलेण्डर की केन्द्रीय नीति और राज्य शासन की मौन और उदासीन रूख लोगों के लिये परेशानी का सबब बना हुआ है। गैस सिलेण्डरों के भावों में जहां वृद्घि हुई वहीं वर्ष भर में 6 सिलेण्डर से अधिक न दिये जाने से लोगों को मजबूरी में एक हजार रुपये में सिलेण्डर खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। भाजपा और कांग्रेस के नेता जो केवल बयानी युद्घ में उलझे हुए हैं उन्हें जनता की कठिनाइयों से लगता है कोई लेना-देना नहीं। यही कारण है कि बढ़ती महंगाई पर केवल बयानबाजी के अलावा इन नेताओं का कोई कत्र्तव्य नजर नहीं आता। केवल पुतला दहन करना और अखबारों की सुर्खियों में रहना नेताओं का शगल बन गया है। किसी भी नेता या दल ने गैस सिलेण्डर को लेकर न तो आन्दोलन किया और न ही केन्द्र सरकार पर दबाव डालने के लिये कोई प्रयत्न किये और न ही मध्यप्रदेश सरकार से आग्रह किया कि अन्य राज्य सरकारों की तुलना में वैट कम किया जाए ताकि उपभोक्ताओं को सस्ते सिलेण्डर उपलब्ध हो सके।