ज्योतिर्गमय

Update: 2012-12-21 00:00 GMT

कर्म का अपमान न करें


प्रत्येक कार्य जीवन में महान संभावनाएं लेकर आता है। छोटे-से-छोटे काम भी जीवन-विकास के लिए उसी तरह महत्वपूर्ण है जिस तरह एक छोटा बीज, जो कालांतर में विशाल वृक्ष बन जाता है। किसी मनुष्य का मापदंड उसकी आयु नहीं वरन् उसके काम ही हैं जो उसने जीवन में किए हैं। इसलिए कर्मवीरों ने काम को ही जीवन का आधार बनाया। एक मनीषी ने तो यहां तक कह दिया- 'हे कार्य? तुम्हीं मेरी कामना हो, तुम्हीं मेरी प्रसन्नता हो, तुम्हीं मेरा आनंद हो।' इसमें कोई संदेह नहीं कि तुच्छ से महान, असहाय से समर्थ, शक्तिशाली, रंक से राजा, मूर्ख से विद्वान, सामान्य से असामान्य बनाने वाले, वे छोटे से लेकर बड़े सभी कार्य हैं जो समय-समय पर हमारे सामने आकर उपस्थित होते हैं। किंतु एक हम हैं जो अनेक शिकायतें करके अपने कर्मदेव का अपमान करते हैं और वह लौट जाता है हमारे द्वार से। तब पश्चाताप करने और हाथ मलने के लिए ही विवश होना पड़ता है हमको। कभी-कभी हम शिकायत करतें है, 'यह काम तो बहुत छोटा है, यह मेरे व्यक्तित्व के अनुकूल ही नहीं है, मैं इन तुच्छ कामों के लिए नहीं हूं।' आदि-आदि। लेकिन हमने कभी यह भी सोचा है उद्गम से आरंभ होने वाली नदी प्रारंभ में इतनी छोटी होती है कि उसे एक बालक भी पार कर सकता है। एक विशाल वृक्ष जो बहुतों को छाया दे सकता है, मीठे फलों से तृप्त कर सकता है, अनेक पक्षियों का बसेरा होता है, आरंभ में एक छोटा सा बीज ही था, जो तनिक सी हवा के झोंके से उड़ सकता था, एक छोटी सी चिडिय़ा भी उसे निगल सकती थी, एक चींटी उसे उठाकर ले जा सकती थी। बहुमूल्य मोती प्रारंभ में एक साधारण सा बालू का कण ही होता है। यही स्थिति हमारे सामने आने वाले कार्यों की भी है। प्रत्येक महान और असाधारण बनाने वाला काम भी प्रारंभ में छोटा, सामान्य लगता है। किंतु कर्मवीर जब उसमें एकाग्र होकर लगते हैं वे ही महान असाधारण महत्व के कार्य बन जाते हैं। क्या आपको याद है कि उस वैज्ञानिक बनने की आकांक्षा रखने वाले झाड़ू लगाने का काम करने सौंपा था और जब शिक्षक ने देखा कि इस कार्य में भी बालक की वैज्ञानिक प्रतिभा और गहरी दिलचस्पी काम कर रही है तो उसे विज्ञान की शिक्षा देनी प्रारंभ की और वह अपने इस सद्गुण को विकसित करता हुआ महान वैज्ञानिक बना। प्रत्येक महान बनने वाले व्यक्ति के जीवन का प्रारंभ उन छोटे-छोटे कार्यक्रमों से ही होता है जिन्हें हम छोटे, तुच्छ समझकर मुंह फेर लेते हैं। उन छोटे-छोटे कार्यों का जिन्हें हम छोटे, महत्वहीन, सामान्य कहकर टाल देते हैं। हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उन पर ही हमारे जीवन की महानताओं का भवन खड़ा होता है। एक-एक कण मिलकर ही वस्तु का आकार-प्रकार बनाते हैं। विशालकाय इंजन में एक कील का भी अपना महत्व होता है। उसे निकाल दीजिए सारा इंजन बेकार हो जाएगा। बड़े भवन में एक छोटे से पत्थर को भी अस्थिर और ढीला-ढाला छोड़ दिया जाए तो उसके गिर जाने का खतरा रहेगा। हमारे जीवन में आने वाले छोटे-छोटे कार्य मिलकर ही महान जीवन का सूत्रपात करते हैं लेकिन जब हम अपने कामों को छोटे और महत्वहीन समझकर उन्हें भली प्रकार नहीं करते तो वे हमें बहुत बड़ा शाप देते हैं, जिससे हमारे जीवन की सफलता अधूरी और अपंग रह जाती है।

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