नई दिल्ली। प्लूटो के बारे में तो तुमने सुना ही होगा। यह प
प्लूटो का आकार हमारे चंद्रमा का एक तिहाई है। यानी हमारे चंद्रमा के तीसरे हिस्से के बराबर है प्लूटो। इसका व्यास लगभग 2,300 किलोमीटर है। अपनी पृथ्वी तो प्लूटो से लगभग 6 गुना बड़ी है। सूर्य से औसतन 6 अरब किलोमीटर दूर है यह प्लूटो। इस कारण इसे सूर्य का एक चक्कर लगाने में हमारे 248 साल के बराबर समय लग जाता है। यह नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और पत्थरों से बना है। इसके वायुमंडल में नाइट्रोजन, मिथेन और कार्बन मोनोक्साइड गैस है। इस कारण यहां का तापमान काफी कम रहता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे यानी -200 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे तुम अंदाजा लगा सकते हो कि यहां कितनी ठंड लगती होगी। इतने कम तापमान में कोई यहां नहीं रह सकता। यहां गैस वाले वातावरण के कारण प्लूटो के भी छल्ले दिखाई देते हैं और यहां का रंग भी बदलता रहता है। वैसे यहां का रंग काले, नारंगी और सफेद रंग का मिश्रण लगता है। प्लूटो की खोज सन् 1930 में हुई थी। अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड डब्ल्यू टॉमबॉग ने इसकी खोज की थी। उस समय लगा कि प्लूटो ग्रह है और उसे 9वां ग्रह मान लिया गया था। तुम्हें जानकर ताज्जुव होगा कि प्लूटो का नाम एक बच्चे ने रखा है। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का क्या नाम रखा जाए। ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11वीं में पढ़ने वाली एक छात्र वेनेशिया बर्ने ने सुझाव दिया था कि इसका नाम प्लूटो रखा जाए। उस लड़की ने कहा कि रोम देश में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं और इस नए ग्रह पर भी हमेशा अंधेरा रहता है। इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। वैज्ञानिकों को यह बात अच्छी लगी और इसका नाम प्लूटो रख दिया गया। अब तो प्लूटो के चार चंद्रमा भी मिले हैं। हब्बल स्पेस टेलीस्कोप ने पिछले साल ही प्लूटो के चौथे चंद्रमा की खोज की है, जिसका नाम एस है। प्लूटो के बाकी तीन चंद्रमा के नाम शैरन, निक्स और हाएड्रा हैं।