हाल ही में दिल्ली की एक अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिली लाउ ने कहा था, ‘यह दुखद है कि देश के वास्तविक नागरिक जहां गरीबी के साये में गुजर-बसर कर रहे हैं, वहीं तीन करोड़ बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से हमारे देश में रह रहे हैं और हमारे नागरिकों के समान सुविधा प्राप्त कर रहे हैं।’ सूचना के अधिकार के तहत गोपाल प्रसाद ने पिछले 6 वर्ष में दिल्ली में अवैध रूप से रहने के दौरान पकड़े गए बांग्लादेशी नागरिकों का ब्योरा मांगा था।इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) की रिपोर्ट में देश में दो करोड़ से अधिक अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के रहने पर देश की सुरक्षा को खतरा बताया गया है।आईडीएसए के विशेषज्ञ आनंद कुमार ने कहा कि अवैध आप्रवासन के आयामों को समझना जरूरी है। सुरक्षा के व्यापक पहलुओं पर तैयार रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सुरक्षा प्रणाली और आप्रवास विभाग के बीच कोई समन्वय नहीं है।कुमार ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार से निर्वाध एवं बिना रोक-टोक के आप्रवास तथा उच्च जन्म दर के कारण स्थिति विस्फोटक हो रही है। ऐसी स्थिति में आप्रवास नियंत्रण के अभाव में आतंकी तत्वों के लिए मार्ग प्रशस्त होता है, जिससे आतंरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है।उन्होंने कहा कि अवैध आप्रवासन की प्रमुख वजह बांग्लादेश से इस मामले में सहयोग नहीं मिलना है। आईडीएसए की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अवैध आप्रवास को रोकने के लिए प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह कारगर साबित नहीं हुए हैं।असम के लोगों ने 1979 में अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए अभियान चलाया था, जो 1985 के समझौते के रूप में समाप्त हुआ। 2005 में भी चिरिंग चापोरी युवा मोर्चा ने ऐसा ही अभियान चलाया था।रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में आबादी का दबाव बढ़ने से वहां से लोगों का भारत में पलायन हो रहा है। भारत में ऐसे आप्रवास के नियमन तंत्र के मजबूत नहीं होने का फायदा उठाते हुए बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्व सीमा से लगने वाले भारत के इलाकों में अपनी घुसपैठ बढ़ा रहे हैं, जिनमें सिमी, हुजी, जमियम अहले हदीस, तबलीग-ए-जमात जैसे संगठन शामिल हैं।