नई दिल्ली | दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज पुलिस को यह स्पष्ट करने का आदेश दिया कि किस प्रकार से विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 144 के तहत छह महीने के लिए निषेधाज्ञा लगाने का अधिकार दिया जा सकता है जबकि यह नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी मुरूगेसन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,‘‘आप दो सप्ताह के भीतर यह बताएं कि सरकार किस प्रकार से आपराध प्रक्रिया संहिता की धारा-144 छह महीने तक लगाने का अधिकार प्रदान कर सकती है।’’उन्होंने कहा, ‘‘आप इस तरह समान रूप से धारा-144 नहीं लगा सकते हैं क्योंकि यह नागरिकों के बुनियादी अधिकार के प्रतिकूल है।’’ अदालत अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत निषेधाज्ञा लगाने हेतु दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए निर्देश जारी करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। अदालत ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए उसे इस पर विस्तृत जवाब देने का आदेश दिया है। इस मामले की में अब छह फरवरी को आगे सुनवाई होगी। दिशा-निर्देश तैयार करने से इंकार करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हम निश्चित तौर पर विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 144 लगाने का अधिकार देने के विषय पर विचार करेंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम इस विषय से निपटेंगे । हम इसे लागू करने विषय से चिंतित हैं।’’ दिल्ली में 16 दिसंबर को चलती बस में 23 वर्षीय युवती से सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद भड़के जनाक्रोश के बाद इंडिया गेट के आसपास धारा 144 लगा दिया गया था। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार की ओर से धारा 144 लगाने का आदेश देने के बारे में सवाल किए और उसके जवाब संतोषप्रद नहीं होने के कारण ही दिल्ली पुलिस को विस्तृत जवाब देने का निर्देश दिया। अदालत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि सरकार ने किस तरह अपना अधिकार विशेष मजिस्ट्रेट को दे दिया।