हादसों को अनावश्यक निमंत्रण
रतनगढ़ माता मंदिर का हादसा प्राकृतिक या दैवीय प्रकोप नहीं था बल्कि मानवजनित और अति उत्साहित भक्तों की लापरवाही का दुष्परिणाम था जिसमें सबसे ज्यादा फायदा उन तथाकथित नेताओं को हुआ जो चुनावग्रस्त राज्य में मुद्दों की तलाश में भूखे भेडिय़े के समान फिर रहे थे। यह हादसा उनके लिए किसी लॉटरी से कम नहीं है, परन्तु इस हृदयविदारक हादसे की तह में जाने पर यह स्पष्ट होगा कि इस प्रकार के हादसों को तब तक नहीं रोका जा सकता, जब तक कि हम अपनी अतिउत्साही धार्मिक भावनाओं पर नियंत्रण नहीं करेंगे और जब तक शासन और सरकार में बैठे हुए हमारे प्रदेश के व्यवस्थापक अपने नैतिक दायित्वों को र्ईमानदारी से निर्वाहन नहीं करेंगे।
नीति पाण्डेय, मुरैना