संसद में हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा
हमारे हिन्दी भाषी नेता भी संसद में अपने विचार अंग्रेजी में रखते हैं और जो हिन्दी में बोलते हैं तो यह कहा जाता है कि वे हिन्दी में इसलिए बोलते हैं क्योंकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती। असल में हिन्दी भाषी राज्यों को अपनी बात हिन्दी में ही रखने की वाध्यता होनी चाहिए वे केवल हिन्दी में ही बोलें। जो हिन्दी भाषी नहीं हैं उन्हें अपनी बात अपनी क्षेत्रीय भाषा में रखनी चाहिए। श्री चिदम्बरम अपनी बात तमिल में कहें संसद में अनुवाद की व्यवस्था है। तमिल का तुरन्त हिन्दी अनुवाद उपलब्ध हो जाएगा। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए कई वर्षों पूर्व यह व्यवस्था की गई थी कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी वह प्रसारित किया जाएगा। लेकिन आज भी सारे आदेश-निर्देश अंग्रेजी में जारी हो जाते हैं। हिन्दी संस्करण बहुत बाद में जारी किए जाते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक सभी कार्यालयों में अंग्रेजी संस्करण ही उपलब्ध होता है। हिन्दी भाषी राज्यों को केवल हिन्दी संस्करण ही जारी किया जाना चाहिए।
लालाराम गांधी, ग्वालियर