जनमानस

Update: 2013-04-23 00:00 GMT

बलात्कारी की मनोदशा कौन बदलेगा

संस्कृति प्रधान राष्ट्र में हमारी अपनी संस्कृति का जनाजा निकाला जा रहा है। संस्कृति और सभ्यता के आदर्श पर कीचड़ फेंका जा चुका है। हमारा राष्ट्र एवं उसमें निवासरत जनता फटी आंखों से यह देख सुन रही है कि अब दरिदों के बीच हमारी पुत्री, मां, बहिन सुरक्षित नहीं है। दुष्कर्म के बढ़ते अपराधों से लगा कि हम पशुता की ओर अपने कदम बढ़ा चुके हैं। बेशक हमने विकास किए हैं वैश्विक विज्ञान ने मानव मन के कपाट खोले है, लेकिन इस सबसे हुआ क्या? जिस यूनीवर्सिटी की शिक्षा से राष्ट्र और समाज में समता और शांति आनी चाहिए थी वह समता और शांति तो लाखों मील दूर है। आज की भौतिकवादी शिक्षा ने शांति की जगह अशांति पैदा कर दी इस शिक्षा से एक व्यक्ति भी प्रसन्न नजर नहीं आता। संस्कृति प्रधान राष्ट्र से आसय अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर चलने वाला एक सभ्य समाज जो  का सम्मान और अपने से बड़ों का आदर करता हो लेकिन इस बीच हमने देखा कि समाज से ये दोनों चीजें गायब हो चुकी हैं। आज  को सम्मान की द़ष्टि से नहीं वासना की दृष्टि से देखा जा रहा है, तमाम तरह के मनोविनोद और मनोरंजन के साधनों ने  को नग्न प्रस्तुत करके युवाओं का मन गंदगी से सराबोर कर दिया है। ये सब कानून सरकार और जनता सबके बीच सरेआम हो रहा है। कोई छुपी हुई बात नहीं है। नैतिक मूल्यों और नैतिकता का पतन तो समझो हो चुका है। अब हम इसमें कानून की दम पर कितना सुधार ला पाते हैं यह समय के गर्भ में छुपा रहस्य है। फिर भी हम अपनी मां बहिन पुत्री के लिए भयाक्रान्त तो है ही। यह बेहद चिंता का विषय है। हम दुष्कर्म होने के तात्कालिक कारण तो खोजते हैं। लेकिन इसकी गंदी जड़ की तह में जाना कोई नहीं चाहता। बेशक दुष्कर्म की घटनाओं के मूल में हमें जाना ही होगा। दुष्कर्मी की मनोदशा, कानून और उसके वर्तमान स्वरूप से नहीं बदल सकती। सर्वप्रथम हमें वासना के भण्डारों को समाप्त करना होगा।  का भोग्या मानने वाली गंदी सोच पर समय रहते प्रहार करना पड़ेगा।मुझे नहीं लगता कि कोई सरकार इस विषय पर गहराई से विचार करेगी अगर वह करती होती तो चोली के पीछे क्या है जैसे अश्लील और न जाने कितने बाजार में बज रहे गानों पर रोक लगती। बेशक हमें अपनी बहिन, बेटी, मां की सुरक्षा के लिए आगे आना ही होगा। उसके पहले दुष्कर्म के कारण खोजने होंगे फिर सबकी मनोदशा भी बदलनी होगी। तभी हमारी बहिन सुरक्षित रह पाएंगी।
                                        मुकेश घनघोरिया, घांटीगांव

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