फिर गूंजा सम्पत्तिकर घोटाला

Update: 2013-05-09 00:00 GMT

ग्वालियर | सम्पत्तिकर घोटाला बुधवार को एक बार फिर नगर निगम परिषद की अभियाचित बैठक में गूंजा। इस घोटाले की जांच के मामले में विपक्ष ने सत्ता पक्ष को घेरते हुए संपत्तिकर वसूली में बरती गई अनियमितताओं को फिर से उजागर किया। उसने सम्पत्तिकर घोटाले की जांच की मांग करते हुए जांच समिति में सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी को शामिल करने की मांग की। विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच हुई तीखी नोकझोंक के बावजूद जांच समिति में दो सदस्य और बढ़ाए गए। इसमें कम्युनिस्ट पार्टी एवं बसपा पार्षद को शामिल करते हुए पूर्व निगमायुक्त अखिलेन्दु अरजरिया को सलाहकार के रूप में नियुक्त करने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
इससे पूर्व इस मामले को लेकर सत्ता पक्ष के पार्षद सुशील वर्मा ने सदन में इस बिंदु को चर्चा करने योग्य न बताते हुए कहा कि इस पर पूर्व में कई बार चर्चा हो चुकी है, ठहराव क्र.-269 के निरस्ती के लिए निगमायुक्त द्वारा शासन को पत्र लिखा जा चुका है। इसके बाद भी इस बिंदु पर चर्चा करना परिषद के समय को बर्बाद करना है। इस पर विपक्षी पार्षद पुरूषोत्तम भार्गव ने कहा कि हम शहर को नहीं लुटने देंगे। संपत्तिकर घोटाले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। हम चाहते हैं कि जो दोषी है उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। विपक्षी पार्षदों ने कहा कि हमारी मांग है कि संपत्तिकर घोटाले की जांच का जिम्मा सेवा निवृत आईएएस अधिकारी को दें। इस समिति में एक सत्ता पक्ष और एक विपक्षी पार्षद भी हो।
पार्षद देवेन्द्र तोमर ने कहा कि आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर निगम के 12 वार्डों की बड़ी संपत्तियों का भौतिक सत्यापन हुआ। इनमें से 6 वार्डों में 22688 कुल संपत्तियां है। 1441 संपत्तियों का भौतिक सत्यापन करने डिमांड नोटिस जारी किए गए। इन 1441 संपत्तियों के संपत्तिकरदाताओं को 394915086 रुपए के बिल जारी किए गए। जबकि कुल 22688 संपत्तियों से 59924812 रुपए वसूले गए तो बीच का पैसा कहां गया। वहीं नगर की कुल संपत्ति 174707 है। वर्ष 2011-12 में नगर की कुल संपत्ति से वसूली 21.55 करोड़ बताई गई। जिसे निगमायुक्त वेदप्रकाश ने संपत्तिकर वसूली में एक ऐतिहासिक प्रगति बताया। इससे साफ झलकता है कि करोड़ों रुपए के बिल थमाए गए और लाखों रुपए का सेटलमेंट किया गया। श्री तोमर ने कहा कि क्या यह जांच का विषय नहीं है। ठहराव शासन की ओर भेज दिया गया। जांच समिति की जांच के संबंध में सत्ता पक्ष के पार्षदों ने भी अपना पक्ष रखा।  

अपने स्थान पर जाएं
बहस उस समय बढ़ गई जब कम्युनिस्ट पार्षद भगवानदास सैनी आसंदी के समक्ष पहुंच गए। भगवान दास सैनी ने संपत्तिकर घोटाले की निष्पक्ष जांच की मांग तीखे स्वर में की। इस पर सभापति ने सैनी को चेतावनी दी कि वह आसंदी के समक्ष आकर बदतमीजी न करें। सभापति ने उन्हें चुप रहने और अपने स्थान पर जाने के लिए भी कहा। विपक्षी पार्षदों ने भी आसंदी का घेराव किया। इसके बाद अंत में जांच समिति में कम्युनिष्ट पार्टी एवं बसपा के पार्षद को शामिल करने का निर्णय लिया गया। साथ ही पूर्व निगमायुक्त श्री अरजरिया को जांच समिति में सलाहकार के रूप में शामिल किए जाने के साथ दो माह के अंदर जांच सदन को प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया। 

अधिकारियों के व्यवहार से दु:खी पार्षद
बैठक में चौथे बिन्दु पर जैसे ही चर्चा शुरू हुई तो विपक्ष और सत्तापक्ष के पार्षद निगम अधिकारियों द्वारा पार्षदों के साथ किए जाने वाले व्यवहार से दुखी दिखे। पार्षदों ने अपनी पीड़ा सभापति के समक्ष व्यक्त की।  पार्षदों ने कहा कि वह अगर अपने क्षेत्र की जनता की कोई समस्या जनप्रतिनिधि होने के नाते अधिकारी के पास लेकर जाते हैं तो अधिकारियों द्वारा उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया जाता। समस्या हल न होने पर यदि थोड़ी ऊंची आवाज में समस्या रखी जाए तो अधिकारी सीधे पुलिस में मामला दर्ज करवा देते हैं। इस पर सभापति बृजेन्द्र सिंह जादौन ने निर्देशित किया कि अधिकारी और पार्षद आपस में समन्वय बनाकर कार्य करें। किसी भी मामले में सीधे पुलिस में न जाकर महापौर, सभापति, निगमायुक्त एवं नेता प्रतिपक्ष के संज्ञान में मामले को लेकर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करें।
बैठक खत्म होने से 10 मिनट  पूर्व पहुंचे निगमायुक्त
नव नियुक्त निगमायुक्त विनोद शर्मा परिषद की पहली बैठक में ही पूरे समय नदारद रहे और बैठक समाप्त होने से मात्र दस मिनट पहले पहुंचे। वहीं महापौर समीक्षा गुप्ता भी बैठक में नहीं पहुंची। निगमायुक्त बैठक खत्म होने के 10 मिनट पूर्व ही सदन में पहुंचे। इसके बाद बैठक 17 मई तक के लिए स्थगित कर दी गई। 

Similar News