देहरादून। उत्तराखंड त्रासदी को एक महीना हो गया है। यह प्रयलंकारी बाढ की प्राकृतिक विपदा 15 जून को आई थी। इस त्रासदी आपदा के बाद अब भी 5728 लोग ऎसे हैं जिनका कोई पता नहीं चल पाया है। अब सरकार की ओर से इन्हें मृत मानते हुए उनके परिजनों को मुआवजा देना शुरू कर दिया जाएगा। राज्य सरकार आज इस आपदा में मारे गए लोगों की संख्या का औपचारिक ऎलान कर सकती है।
गौरतलब है कि सरकार ने कहा था कि अगर एक महीने तक भी किसी लापता व्यक्ति की जानकारी नहीं मिल पाएगी तो उसे भी मृत मान लिया जाएगा और उसके मुआवजे की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक 2089 और उत्तराखंड के 924 लोग इस आपदा के शिकार हुए हैं। इन लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि दूसरे राज्यों के मृतकों के बारे में संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को सूचना दे दी गई है। मृत लोगों के आश्रितों को एक शपथ-पत्र के साथ तुरंत मुआवजा दे दिया जाएगा और अगर कोई व्यक्ति जीवित पाया जाता है तो उसके परिवार को यह राशि लौटानी होगी।
बहुगुणा ने कहा, चूंकि वे लापता हैं इसलिए हम उन्हें स्थाई रूप से लापता मानकर उनके परिजनों को मुआवजा तो दे देंगे, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से उनको खोजने का अभियान जारी रखा जाएगा। जो भी हमारे पास फोटो है, उसके आधार पर हम अस्पतालों और दूसरी जगहों में उन्हें खोजते रहेंगे, ताकि कोई भटक नहीं गया हो। विजय बहुगुणा ने कहा कि सरकार ही लोगों को हलफनामा बनाकर देगी और बडी सरल प्रक्रिया रखी गई है ताकि लोगों को तत्काल मुआवजा मिल जाए। हर मृतक और लापता व्यक्ति के परिजन को प्रधानमंत्री राहत कोष से दो लाख और राष्ट्रीय आपदा निधि से डेढ लाख रूपए दिए जाएंगे। उत्तराखंड सरकार प्रदेश के पीडितों को अलग से डेढ लाख रूपये दे रही है। कानूनन 7 वर्ष लापता व्यक्ति को ही मृत क की मान्यता भारतीय दंड संहिता के तहत सात वर्ष तक लापता रहने के बाद ही किसी व्यक्ति को कानूनन मृत माना जाता है, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने आगे बढकर आपदा की तिथि के एक माह बाद लापता लोगों को मृतक की श्रेणी में मान लेने का निर्णय किया है। लापता लोगों की संख्या उनके परिजनों द्वारा उत्तराखंड और उनके मूल राज्यों में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर बताई जा रही है।
हालांकि अभी भी माना जा रही है कि लापता और मृतकों की यह वास्तविक और अंतिम संख्या नहीं होगी, और शायद वास्तविक संख्या कभी पता भी नहीं चल सके। मारे गए लोगों में ऎसे कई साधु, भिखारी और घोडे-खच्चार वाले लोग होंगे, संभवत: जिनके बारे में कोई रिपोर्ट भी नहीं लिखाई गई होगी। इसके अलावा राहत और उससे मृतकों की सूची में गडबडी की आशंका से भी पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है।