नई दिल्ली | कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दोषी माननीयों की सदस्यता खत्म वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाए गए अध्यादेश पर अपनी नाराजगी जताई है। राहुल गांधी ने कहा कि इस अध्यादेश को फाड़कर फेंक देना चाहिए। यह अध्यादेश पूरी तरह बकवास है। राहुल ने ऐलान किया कि अध्यादेश पूरी तरह गलत है और सरकार गलत कर रही है। राहुल ने कहा कि अध्यादेश को फाड़कर फेंक देना चाहिए। गौरतलब है कि इससे पहले दोषी माननीयों की सदस्यता खत्म वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाए गए अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अड़ंगा लगा दिया था। प्रणब इससे सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। इस सिलसिले में राष्ट्रपति ने गुरुवार को कानून मंत्री कपिल सिब्बल, लोकसभा में सदन के नेता एवं गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ से बातचीत की।
समझा जाता है कि तीनों मंत्रियों ने राष्ट्रपति को बताया कि अध्यादेश के जरिए सिर्फ उन सांसदों और विधायकों को मौका दिया जा रहा है, जो उच्च अदालत में अपील करेंगे। इस दौरान उनकी सदस्यता भले ही नहीं जाए, लेकिन उन्हें संसद या विधानसभा में वोट देने का अधिकार नहीं रहेगा। इस प्रकार अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से पलटा नहीं जा रहा है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंगलवार को हुई बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी। इसे लेकर कई किस्म के सवाल उठे थे। एक तो यह कि इससे संबंधित बिल संसद में लंबित है। इसलिए आनन-फानन में अध्यादेश लाने की क्या जरूरत है। भाजपा समेत कई पार्टियां इसके विरोध में हैं।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को तीन केन्द्रीय मंत्रियों को बुलाकर दोषी सांसदों और विधायकों से संबंधित अध्यादेश की जरूरत को लेकर सवाल पूछे। उधर, विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर अपना हमला तेज किया। कांग्रेस में भी इस मुद्दे पर असंतोष के स्वर सुनाई दिये।
इस अध्यादेश का उद्देश्य उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को निष्प्रभावी करना है जिसमें शीर्ष अदालत ने गंभीर अपराधों में दोषी पाये गये सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्यता से बचाने वाले जनप्रतिनिधि कानून के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था।
कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति इस अध्यादेश को स्वीकृति देने के लिए किसी जल्दबाजी में नहीं हैं और वह चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश की जरूरत पर स्पष्टीकरण दे। इस अध्यादेश की विपक्षी दल और समाज के सदस्य आलोचना कर रहे हैं। मुखर्जी मंजूरी से संबंधित फैसला करने से पहले विशेषज्ञों से कानूनी राय ले सकते हैं।
संविधान के तहत, राष्ट्रपति के लिए अध्यादेश को मंजूरी देने से पहले उपस्थित परिस्थितियों से संतुष्ट होना जरूरी है। राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए अध्यादेश को सरकार के पास भेज सकते हैं लेकिन फिर उन्हें इस पुनर्विचार के बाद सरकार द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कदम उठाना होगा।
राष्ट्रपति के साथ मंत्रियों की बैठक से पहले लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात करके उनसे अध्यादेश को पुनर्विचार के लिए सरकार के पास भेजने का अनुरोध किया, क्योंकि उसके अनुसार यह असंवैधानिक और अनैतिक है।