ज्योतिर्गमय

Update: 2014-01-16 00:00 GMT

चिंतन-दैहिक, मानसिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक

आदमी सोचता है, चिन्तन करता है, उसके कई आयाम हैं। या तो वह अपनी या दूसरे की देह की चिन्ता करता है जैसे आप या अन्य कोई थोड़ी बहुत अस्वस्थता महसूस करे तो बस आप पड़ गए चिन्ता में कि आगे क्या होगा? थोड़ी सी बात को बढ़ा-चढ़ा कर सोचना और परेशान हो जाना या करना। इस मामले में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं बहुत ठीक हैं उन्हें थोड़ा बहुत शारीरिक पीड़ा है, कष्ट है तो वे उसे भूले रहती हैं। अपने काम में लगी रहती हैं। सुबह उठकर बच्चे के लिए स्कूल का टिफिन बनाना है फिर घर के लोगों के लिए नाश्ता तैयार करना है। पूजा पाठ करना है। पड़ोसन से या घर में अन्य महिला सदस्य से बतियाना है। चाहे ननद हो, सास हो, देवरानी, जेठानी हो याने उनके पास समय ही नहीं रहता कि वे अपने शरीर के बारे में सोचें चिन्ता करें। जब चिन्तन ही नहीं होगा तो चिन्ता कैसे होगी। चिन्ता क्या है? नकारात्मक, निषेधात्मक विचार। हर बात में उल्टा सोचना, बुरा सोचना आशंका, शंका में अपनी शक्ति खोना। मानसिक चिन्तन शरीर के अलावा भी कई वस्तुएं हैं, आदमी हैं। परिवार, नौकरी, पड़ोसी, रिश्तेदार या अपनी परिस्थिति और उसमें कोई विसंगति हो तो मानसिक चिंतन चिन्ता, भय में बदल जाता है। हम बुरा सोचने लगते हैं पता नहीं क्यों आदमी हमेशा बुरा पहले सोचता है। अच्छा सोचना उसे आता ही नहीं या सिखाया ही नहीं जाता। वाकई सब पढ़ाई की तरह इसकी भी पढ़ाई होना चाहिए कि हमें सोचना कैसे चाहिए। किस सीमा तक सकारात्मक, नकारात्मक। हम सोचते-सोचते सीमा पार कर जाते हैं। यदि सोच नकारात्मक है तो बहुत नुकसान हम अनजाने में ही अपना या दूसरे का कर देते हैं। अब आइए, आध्यात्मिक चिन्तन पर, आध्यात्मिक चिंतन है कि हम हर चीज वस्तु, व्यक्ति, घटना के बारे में अच्छी बात सोचें चिन्ता भय, मोह, आसक्ति मुक्त होकर सोचें। कोई रिश्तेदार अस्पताल में भरती है। उसके लिए प्रार्थना करें दिल से हमेशा अच्छा सोचें उसे भी लाभ हमें भी लाभ। निर्लिप्त, अनासक्त भाव से सोचें वैराग्य भाव अपने में पैदा करें। यह सोचें कि दुनिया जिसने बनाई है उसे सबके चिन्ता है। सब ठीक होगा ईश्वर सब ठीक करेंगे। आशा और विश्वास बनाए रखें सब उस परम सत्ता पर छोड़ें। उसे अपना काम स्वयं करने दें, अपनी टांग न अड़ाएं। अब बौद्धिक चिन्तन पर आ जाएं कोई लेख लिखें, कुछ अच्छा उद्बोधन दें कुछ सृजन करें सकारात्मक। स्वयं लाभान्वित हों, तृप्त हों दूसरों को करें। दुनिया आध्यात्मिक और बौद्धिक चिन्तन से चलती है। शारीरिक और मानसिक चिन्तन उसमें अड़चनें पैदा करते हैं। आध्यात्मिक, बौद्धिक चिन्तन वाले मनुष्य के पास नकारात्मकता के लिए कोई समय नहीं होता। उसका प्रवेश वर्जित होता है तो चिन्तन मन में होता है। अपने मन को शिक्षित करें, यह काम रोज-रोज करें। हम सोचें हमें कैसे सोचना चाहिए क्या और क्या नहीं यह काम रोज करें। धीरे-धीरे मंजिल पर पहुंच जाएंगे बस शुरु करें, यही मेरा संदेश है।


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