काठमाण्डू | विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति, समृद्धि और विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए सदस्य देशों का आह्वान किया कि वे तकनीकी वैज्ञानिक एवं मानव संसाधनों का परस्पर सहयोग बढ़ाकर क्षेत्र को बेहतर सुरक्षित एवं सशक्त बनाने में मदद करें।
स्वराज ने दक्षेस शिखर बैठक के पहले क्षेत्रीय विदेश मंत्रीस्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संसाधन और प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है लेकिन इन संसाधनों का अभी तक पूरा उपयोग नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि हमारी सामूहिक इच्छा शक्ति से इस रचनात्मक ऊर्जा का उपयोग हो सकता है जिससे हमारे लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में मदद मिलेगी।
विदेश मंत्री ने कहा कि पिछले 29 साल में दक्षेस संस्थाओं, प्रक्रियाओं, प्रणालियों समझौतों और संधियों को लेकर सक्रिय रहा है। इस दौरान तमाम क्षेत्रीय केन्द्र, विशेषज्ञ संस्थायें, शीर्ष संगठन और अन्य मान्यता प्राप्त संस्थान अस्तित्व में आये हैं। उन्होंने कहा कि दक्षेस के तीसवें वर्ष में हमें उस राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है जिससे इन संस्थागत व्यवस्थाओं का उपयोग करके ऐसी नीतियां योजनाएं एवं कार्यक्रम बने सूचनाओं एवं ज्ञान का आदान-प्रदान हो ताकि दक्षेस के वे विचार फलीभूत हो सके जिन्हें हमारे पूर्ववर्तियों ने प्रकट किया था।
स्वराज ने कहा कि वह क्षेत्रीय शांति, समृद्धि और विकास के हमारे साझा दृष्टिकोण के प्रति भारत की संजीदा और समर्पित प्रतिबद्धता दोहराना चाहतीं हैं। उन्होंने कहा कि भारत क्षेत्रीय सहयोग की प्रक्रिया तथा हमारे वैज्ञानिक तकनीकी एवं मानव संसाधन क्षमता को साझा करने को गति देने में हर तरह से सहयोग का इच्छुक है ताकि दक्षिण एशिया को सुरक्षित मजबूत और बेहतर बनाया जा सके।
स्वराज ने कहा कि भारत का भरोसा 'सबसे पहले पड़ोसी' नीति में हैं। इस भावना के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस देशों के प्रमुखों को शामिल होने का आमंत्रण दिया गया था।
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार 'सबका साथ सबका विकास' के प्रति प्रतिबद्ध है। दक्षेस देशों के साथ भी भारत की यह नीति है। दक्षेस के सभी आठ सदस्य देशों के लोगों का जीवन स्तर सुधारने और तेजी विकास के लिए भारत प्रयासरत है। इसको प्रभावी और कुशलता के साथ पूरा करने के लिए सभी सदस्य देशों को क्षेत्रीय आर्थिक विकास सहयोग की नीति अपनानी होगी।
उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए गहरे सहयोग की ओर बढ़ना होगा और इसके लिए मैं तीन क्षेत्रों का उल्लेख करती हूं। ये संस्कृति, वाणिज्य और संपर्कता हैं। दक्षेस देशों की हजारों वर्षों से साझी संस्कृति रही है। नई दिल्ली में स्थापित दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय से इस भावना को बढ़ावा मिलेगा। दक्षेस देशों के आपसी व्यापार से क्षेत्र की आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।