तीसरे मोर्चे की सरकार को नकार रहा देश का 87 फीसदी मतदाता

Update: 2014-03-14 00:00 GMT

नई दिल्ली। लगभग साल भर से देश में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों का तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद चल रही है। यह कोशिश इसलिए जारी है ताकि लोकसभा चुनाव के बाद इन दोनों बड़ी पार्टियों को सत्ता से बाहर रखा जा सके, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। देश का लगभग 87 प्रतिशत मतदाता इस समय केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।
यह चैकाने वाला तथ्य देश की एकमात्र बहुभाषी न्यूज एजेंसी ‘‘हिन्दुस्थान समाचार‘‘ ने हाल ही में 22 राज्यों के 242 संसदीय क्षेत्रों की सियासी नब्ज टटोलने के बाद अपनी सर्वे रिपोर्ट में जारी किया है। सर्वे के संवाददाताओं ने 77581 मतदाताओं की राय ली तो पता चला कि मात्र 13.55 फीसदी मतदाता ही देश में तीसरे मोर्चे की सरकार के पक्षधर हैं जबकि 65.53 प्रतिशत वोटर भाजपा की और 20.9 प्रतिशत लोग कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार चाहते हैं।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के बड़े राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, प0 बंगाल, केरल और आसाम के क्रमशः 6.64, 9.8, 14, 15.15, 27.76, 06 और 11.66 प्रतिशत मतदाता ही तीसरे मोर्चे की सरकार के पक्ष में हैं। इसी तरह हिमाचल प्रदेश, गजरात, पंजाब, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर के भी अधिकतर मतदाता तीसरे पक्ष के प्रति पक्षकार बनने में उदास दिखे।
हालांकि मात्र दो संसदीय सीट वाले उत्तर पूर्व के त्रिपुरा राज्य के लगभग 52 फीसदी मतदाता तीसरे मोर्चे की सरकार चाह रहे हैं। इन पक्षकारों की संख्या प0 बंगाल में भी लगभग 28 प्रतिशत दर्ज की गई लेकिन वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वामदलों के साथ तीसरे मोर्चे में जायेंगी, इसकी कल्पना ही अकल्पनीय है।
दरअसल देश में जब भी आम चुनाव आता है, तीसरे मोर्चे की चर्चा तेज हो जाती है। इस बार तो कई प्रादेशिक क्षत्रप साल भर पहले ही इसकी संभावना तलाशने लगे थे, लेकिन असली कवायद तब शुरू हुई जब भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया।
मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी तय होने से पहले तक वाम दल तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर बेहद उदासीन थे। यहां तक कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बार-बार अनुरोध पर भी इनके नेताओं के कांन में जूं नहीं रेंग रहा था। मगर, मोदी के आगमन से वाम दलों के नेता अचानक सतर्क हो गए हैं। ये अब यह मानने लगे हैं कि मोदी के चलते चुनाव सांप्रदायिकता बनाम धर्म निरपेक्षता का रूप ले लेगा और इसका सीधा फायदा भाजपा तथा कांग्रेस को मिल जायेगा।
उधर, भारतीय लोकतंत्र का इतिहास बताता है कि जब भी देश में तीसरे मोर्चे ने जन्म लिया वह ज्यादा दिन तक जिंदा न रह सका। 1977 के चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब गैर कांग्रेसी पार्टियों के 295 सांसद लोकसभा में पहुंचे थे। उस समय मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। हालांकि उस गठबंधन वाली जनता पार्टी में जनसंघ भी थी, जो अब भरतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) है। यह सरकार दो साल भी न पूरा कर पाई और 1979 के मध्य में ही मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जनता पार्टी से अलग हो गए थे।
इसके बाद जनता पार्टी से अलग हुए चैधरी चरण सिंह देश के अगले प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार अल्पमत की थी और कांग्रेस का उसे समर्थन प्राप्त था लेकिन, विश्वास मत हासिल करने से पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।
दूसरी बार वाम दलों को लेकर तीसरा मोर्चा बना जिसमें ‘‘नेशनल फ्रंट‘‘ का अवतार हुआ और 1989 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। उस समय भी भाजपा का बाहर से समर्थन था। यह सरकार भी साल भर बाद गिर गई।
फिर वर्ष 1996 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस और भाजपा में किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन सरकार चला कर इस्तीफा दे चुके थे। इसके बाद 13 पार्टियों ने मिल कर यूनाइटेड फ्रंट बनाया। इस फ्रंट ने दो साल में दो सरकारें बनाईं। एचडी देवेगौड़ा (1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997) और आईके गुजराल (21 अप्रैल 1997 से 18 मार्च 1998) प्रधानमंत्री बने। इन सरकारों को कांग्रेस और टीपीडी बाहर से समर्थन दे रहे थे। एक-एक कर कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया और दोनों सरकारें अकाल मृत्यु को प्राप्त हुईं।
अब सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रहे आम चुनाव के वक्त वे सभी दल जो कभी न कभी भाजपा अथवा कांग्रेस के समर्थन से सत्ता का सुख भोग चुकी हैं, एक बार फिर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद में जुट गई हैं। इस बार इनका नारा गैर कांग्रेस और गैर भाजपा सरकार बनाने का है। आजादी से लेकर अब तक 15 आम चुनाव हुए हैं लेकिन कभी भी ऐसे नतीजे नहीं आये जिसमें कांग्रेस और भाजपा ( 1980 से पहले भारतीय जनसंघ) को छोड़कर अन्य दल सरकार बनाने लायक संख्या में रहे हों।
सर्वे में भी मतदाताओं ने शायद, तीसरे मोर्चे के पिछले अनुभवों को देखते हुए ही अपनी राय दी है। ऐसे में इन दोनों राष्ट्रीय दलों से इतर पार्टियों के प्रस्तावित तीसरे पक्ष का भविष्य क्या होगा, यह तो 16 मई को होने वाली मतगणना के बाद ही निश्चित हो पायेगा।
अब तक के चुनावों में कांग्रेस, भाजपा व अन्य दलों के सांसदों की संख्या
चुनाव वर्ष सांसद कांग्रेस भाजपा कांग्रेस व भाजपा अन्य दल
1952 489 364 03 367 122
1957 494 311 04 375 119
1962 494 361 14 375 119
1967 520 283 35 318 202
1971 518 352 22 374 144
1977 542 154 93 247 295
1980 542 353 16 369 173
1984 542 415 02 417 125
1989 543 197 85 282 261
1991 543 232 120 352 191
1996 543 140 161 301 242
1998 543 141 182 323 220
1999 543 114 182 296 247
2004 543 145 138 283 260
2009 543 206 116 312 178

मतदाताओं की राय में देश की अगली सरकार

भाजपा कांग्रेस तीसरा मोर्चा
65.53 प्रतिशत 20.9 प्रतिशत 13.55 प्रतिशत

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