लखनऊ | उत्तर प्रदेश ने देश को कई नायाब महिला राजनीतिज्ञ दिए हैं, लेकिन अब उसी प्रदेश की चुनावी राजनीति में महिलाओं की उपस्थिति संतोषजनक नहीं है। प्रदेश की लगभग 10 करोड़ की महिला आबादी के लिए प्रमुख दल मिलकर भी 100 महिलाओं को लोकसभा का टिकट नहीं दे पा रहे हैं।
2009 के लोकसभा चुनाव में चार बड़े दलों ने उत्तर प्रदेश से 28 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें से मात्र 11 महिलाएं ही संसद भवन पहुंचीं। बाद में हुए उपचुनाव में सपा की डिम्पल यादव जीतीं। रालोद के टिकट पर सारिका बघेल भी लोकसभा पहुंचीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण में उप्र से अभी तक कांग्रेस व बसपा ने 7-7, भाजपा व आप ने 6-6, सपा ने 5 और रालोद ने एक महिला को टिकट दिया है। यह वह प्रदेश है, जहां से संसद पहुंचने वाली महिलाएं देश की राजनीति को नई दिशा और विचार देने का कार्य करती रही हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सुभद्रा जोशी, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, सुशीला नायर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अथवा अभिनेत्री जयाप्रदा, सभी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और मिसाल कायम की।
सोनिया गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद तमाम कठिन परिस्थितियों से पार्टी को निकाला, वहीं मायावती ने दलित के घर जन्म लेकर तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उप्र में चार बार मुख्यमंत्री का पद संभालकर लोकतंत्र की सार्थकता सिद्ध की। जबकि मेनका गांधी ने पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम दिखा गौतमबुद्ध का संदेश देने का प्रयास किया।
उन्नाव की सांसद अन्नू टंडन ने धमाकेदार तरीके से चुनाव जीत संसद में कारपोरेट जगत की उपस्थिति का अहसास कराया। सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह ने प्रतापगढ़ से कई बार जीत हासिल कर संसद में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।
उनकी जीत पुराने रजवाड़ों को लोकतंत्र के सांचे में खुद को कारगर ढंग से ढाल लेने की बात को प्रमाणित करती है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने संसद में जिस तरह की राजनीतिक मर्यादा का आचरण पेश किया, वह युवा सांसदों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है।
उप्र से कई ऐसी महिलाएं भी संसद में पहुंची, जिन्होंने पहली बार घर की चैखट लांघी और राजनीति में परचम फहराया। इस तरह के सांसदों में तबस्सुम बेगम, सीमा उपाध्याय, कैसरजहां और सारिका बघेल प्रमुख हैं। वर्तमान में तो उप्र से कुल 13 महिला सांसद हैं, लेकिन बीते चुनावों में बमुश्किल औसतन 10 महिलाएं संसद पहुंच पा रही हैं।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 10 महिलाओं को टिकट दिया था। सपा, बसपा व कांग्रेस ने 6-6 महिलाओं को टिकट दिया था। वहीं रालोद ने दो महिलाओं को मौका दिया। इनमें से सभी प्रमुख दलों की कुल 13 महिलाओं को जीत मिली।
इस बार सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद और भाजपा फिर महिलाओं को टिकट दे रहे हैं, लेकिन यह संख्या प्रदेश की 10 करोड़ की महिला आबादी के हिसाब से उचित नहीं प्रतीत हो रही है।