लखनऊ | इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नया विकल्प 'नोटा' देश के आम आदमी की तरह सबसे नीचे होगा। निर्वाचन आयोग ने वोटिंग मशीन पर ऐसी व्यवस्था शायद यह सोच कर की होगी कि चुनाव में सुधार की बुनियाद नीचे से पड़े तो ज्यादा मजबूत रहेगी।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से नोटा (उपर्युक्त कोई पसंद नहीं) की शुरुआत हुई, पर तब इसके महत्व की ज्यादा जानकारी मतदाताओं को नहीं थी। यही वजह रही कि इसका ज्यादा उपयोग नहीं हो सका।
खास बात यह कि तरक्की के नक्शे में छत्तीसगढ़ राज्य को पिछड़ा दर्शाया जाता है, बावजूद इसके यहां विधानसभा चुनावों में नोटा का सर्वाधिक 3 फीसदी मतदाताओं ने प्रयोग किया। राजस्थान व मध्य प्रदेश में नोटा का 2-2 प्रतिशत मतदाताओं ने इस्तेमाल किया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की मौजूदगी के चलते खारिज करने वाले इस विकल्प का मात्र 0.58 प्रतिशत मतदाताओं ने उपयोग किया।
प्रावधानों के अनुसार, कुल पड़े वोट का 90 फीसदी यदि नोटा के पक्ष में रहता है, तब भी शेष 10 प्रतिशत मतों से फैसला हो जाएगा, यानी उम्मीदवार 'अ' को 6 फीसदी, 'ब' को 3 फीसदी और 'स' को प्राप्त 1 फीसदी मत मिले, तो सर्वाधिक मतों के आधार पर 'अ' को विजयी घोषित कर दिया जाएगा।