प्रसंगवश

Update: 2014-03-30 00:00 GMT

या अली... तू क्यों इतना बली

  • लोकेन्द्र पाराशर 

मुसलमानों के वोटों को खिलौने की तरह खरीदने की होड़ ने आज मुल्क को उस मुकाम तक पहुंचा दिया है कि इस फेर में वे भी फंसते दिखाई देते हैं जिनका जन्म राष्ट्रवाद की पवित्र गंगोत्री से हुआ है। गंगोत्री से आगे प्रवाहित होते-होते गंगा का जो स्वरुप इलाहाबाद और कानपुर में बनता है, वह आस्था को पवित्रता के पाखण्ड की अनुभूति कराता है। भाजपा के विस्तार के साथ भी वस्तुत: ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है। वहां निश्चित ही आज भी गंगोत्री कल-कल, छल-छल सिर्फ राष्ट्र गीत ही गुनगुनाती है, लेकिन कहीं न कहीं कानपुर में आकर मिल रहे चमड़े के पानी को रोक नहीं पाती है। नस्ल-नस्ल का चमड़ा गंगाजी का हिस्सा बनने को आतुर है। इन्हें गंगा धरती पर उतारने के भागीरथी प्रयासों से न कोई सरोकार है, न हो सकता है। यही वो नाले और नालियां हैं जिनके लिए विख्यात विचारक एस. गुरुमूर्ति ने आज कहा कि 'साबिर अली को भाजपा में लाने का निर्णय कुछ अक्लमंदों का मुर्खता भरा कदम है।
श्री एस. गुरुमूर्ति की पीड़ा के परिप्रेक्ष्य में यह समझने की अत्यंत आवश्यकता है कि जिस नेतृत्व की शुचिता, दृढ़ता और राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण के कारण देश में भाजपा के प्रति दीवानगी दिखाई दे रही है, उस नेतृत्व को अपने प्रवाह को अविरल बढ़ाते समय मूल्यों को सर्वाेपरि रखने की साधना का समय क्यों नहीं मिल पा रहा? मुसलमान भी इस देश का उतना ही महत्वपूर्ण नागरिक है जितना हिन्दू। लेकिन मुसलमान के वोट प्राप्त करने के लिए अभी तक जो काम कांग्रेस केरल में और कम्युनिस्ट पश्चिम बंगाल में करते रहे, वही काम भाजपा को करना जरूरी है क्या? भाजपा को मुसलमान वोट नहीं देगा, यदि ऐसी चिंता किसी को सता रही है और उसी चिंता में साबिर अली जैसों में नया सवेरा वह देख रहा है, तो बुद्धि पर तरस आता है।
विद्वान कहते हैं कि शिखर तक पहुंचना उतना कठिन नहीं होता, जितना शिखर पर टिके रहना। यदि शिखर पर रहना है तो अनवरत संतुलन चाहिए। देश का वातावरण भाजपा को शिखर तक पहुंचाने का लग रहा है। ऐसे में शिखर से चंद लम्हों की दूरी पर ही असंतुलन दिखाई देना कितना उचित है? इस पार्टी से लोग आतंकवाद, नक्सलवाद के विनाश की आस लगाए बैठे हैं। हो सकता है कागजों में साबिर अली के आतंकी भटकल से रिश्तों के प्रमाण न हों, हो सकता है गुलशन कुमार की हत्या में उनकी दाऊद इब्राहिम से सांठगांठ की गांठ कभी न खुल पाए, परन्तु 'बिना आग के धुआं नहीं निकल सकता। और धुआं दुनियां ने देखा है कि मोदी की पटना की रैली में जब बम फटे, तो साबिर ने क्या फरमाया- 'कहीं विस्फोटों के पीछे हिन्दू आतंकवाद तो नहीं। गुजरात के दंगों पर इन्हीं साबिर अली ने मोदी के प्रति कैसे-कैसे अपशब्दों का प्रयोग किया। उन्होंने दो साल में ही बीसियों बार सैकड़ों अभद्र टिप्पणी उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए कीं, जिसकी पवित्रता और राष्ट्रभक्ति का विश्व में किसी से मुकाबला नहीं किया जा सकता।
श्री गुरुमूर्ति ठीक कहते हैं कि यह गंदगी दूर की जानी चाहिए। श्री मुख्तार अब्बास नकवी जैसे बड़े नेता को यदि इतना तल्ख बयान देना पड़ा कि अब शायद 'दाऊद भी हमारी पार्टी में आ जाए। तो सोचिए सामान्य कार्यकर्ता को इस कार्रवाई ने किस कदर झकझोरा होगा? जिस भाजपा को प्रमोद मुतालिक को तुरंत बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा, उसने साबिर जैसी गंभीर गलती कैसे कर दी? जबकि प्रमोद मुतालिक पर तो किसी पब से लड़कियों को भगाने का आरोप था, किसी पवित्र मंदिर से महिलाओं को खदेडऩे की बात नहीं थी। यह अलग बात है कि ऐसी ही किन्हीं पबी लड़कियों के साथ मारपीट करने वाले दिनाकरण कांग्रेस मेें दिन दूने रात चौगुने फलफूल रहे हैं। हम यहां एक गंभीर खतरे से उन राजनेताओं को सचेत करना चाहते हैं जिनके भीतर राष्ट्रवाद के बीज बचे हैं। यह कि वोट के लिए जिस कौम को तमाम पार्टियां वर्षों से तरह-तरह के प्रलोभन देकर रिझाती रही हैं, उस कौम के आम आदमी का जीवन स्तर तो आज तक सुधरा नहीं है, लेकिन वहां एक खतरनाक ठेकेदारी व्यवस्था का अंकुरण जरूर हो गया है। इस कौम के कुछ चतुर लोगों ने अपने दबाव समूह बना लिए हैं। योजनापूर्वक यही ठेकेदार मीडिया की बहस के माध्यम से भी भारी सक्रिय हैं। वे ऐसा वातावरण बना रहे हैं कि 'हम हैं तो दम है। वे स्वयं के लाभ के लिए मुसलमानों को भी धोखा देने का वही काम कर रहे हैं जो तमाम पार्टियां करती आई हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसे ही ठेकेदारों ने देश के विभाजन की बुनियादें रखी हैं। फिर से कहीं वही खाद-पानी दिखाई देता है। जो इस देश का नागरिक है, वह समान है। लेकिन अलगाववाद के तौर तरीकों को अनदेखा किया जाना अनिष्टकारी हो सकता है।
ठीक है साबिर आए और चले गए। भाजपा कार्यकर्ता भी मन समझा लेगा। लेकिन जहां यह जंग लग रही है, घर के उस बर्तन को ठीक से मांजने की चिंता तुरंत होनी चाहिए। और अंत में सिर्फ यही कि नरेन्द्र मोदी नामक भाजपा का जो सितारा आज धूमकेतु की तरह चमक रहा है उसका कारण उनका शरीर सौष्ठव और भाषण शैली नहीं है, बल्कि उनके भीतर देश के लोगों ने कठोर ईमानदारी, प्रखर राष्ट्रवाद, व्यक्तिगत फकीरी, पारिवारिक विरक्ति, पग-पग स्पष्टता, और भारत के सुखद भविष्य का नया आसमान देखा है। और इस आसमानी उड़ान के बीच खगों का स्थान विघ्न पैदा करता है। बस इतना समझना ही पर्याप्त है कि दिशा ठीक तो दशा ठीक।

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