दफनाए शव को परिजनों को सौंपा

Update: 2014-06-16 00:00 GMT

प्रशासनिक लापरवाही से मृतक को नहीं मिल सके चार कंधे


शिवपुरी।
प्रशासन की मानवीय संवेदना कितनी जीवंत है कि बीते रोज एक व्यक्ति के शव को ढकने के लिए उनके पास दो गज कफन तक देना उचित नहीं समझा। जबकि मृतक का मजाक उड़ाते हुए हिटैची मशीन में जानवरों की भांति डालकर माधव चौक से शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए उसकी शवयात्रा निकाली गई। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन में बैठे अधिकारियों की मानवीय संवेदना पूर्णत: समाप्त हो गई हैं। पुलिस महकमे द्वारा शव का पोस्टमार्टम कराकर आनन-फानन में नगर पालिका की हितैची में डालकर दफना दिया गया। पुलिस ने शव की जांच-पड़ताल तक करने की जहमत नहीं उठाई। प्रशासनिक लापरवाही के कारण मृतक राजू को न चार कंधे मिल सके और न दो गज कफन। वहीं मृतक के परिजनों को 30 घंटे बाद शव मिल सका।

छह घंटे लगे शव को निकालने की स्वीकृति में
प्रशासनिक अधिकारियों को जब इस तथ्य का पता चला कि मृतक थाने के नजदीकी ही रहने वाला है। उक्त जानकारी मृतक के परिजनों ने देहात थाना में दी तथा कहा कि हमारे व्यक्ति को आपने हमें बगैर सूचना दिए कैसे दफना दिया। इसके बावजूद भी दफनाए गए शव को निकालने की स्वीकृति में छह घंटे का समय लगा दिया गया।

दफनाने के 30 घंटे बाद निकालना पड़ा शव
गत दिवस गौशाला क्षेत्र में अज्ञात हालत में मिले शव को पुलिस द्वारा बिना जांच-पड़ताल किए ही लावारिस सफझकर आनन-फानन में दफना दिया गया लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ा तब अनुविभागीय अधिकारी को शव को निकालने आदेश देना पड़े और दफनाए गए शव को 30 घंटे के अंतराल में ही पुलिस को बाहर निकालना पड़ा।

थाने से चंद कदम की दूरी पर रहता था मृतक
गौशाला क्षेत्र में मिले शव के प्रति पुलिस व नगर पालिका महकमे के कर्मचारियों द्वारा यदि जरा भी मृतक के प्रति मानवीय संवेदना दर्शाई गई होती तो शायद मृतक राजू की ऐसी दुर्गति नहीं होती। पुलिस द्वारा मृतक की जांच-पड़ताल करने का जरा भी प्रयास किया गया होता तो मृतक के परिजनों को उसका शव मिल जाता और विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार हो जाता।

मानवाधिकारों का उल्लंघन
पुलिस व नगर पालिका कर्मचारियों द्वारा मृतक के शव के साथ अपनाई गई प्रक्रिया क्या मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है? जिनके द्वारा मृतक के शव को जानवरों की भांति हितैची में डालकर उसकी अंतिम यात्रा निकाली गई। जबकि प्रशासन के पास अज्ञात शव के अंतिम संस्कार करने के लिए शासन द्वारा राशि स्वीकृत की जाती है। मृतक के हाथ पर उसका व पत्नी का नाम गुदा होने के बावजूद शव पर न तो कफन डाला गया और न ही उसे श्मशान ले जाकर अग्नि दी गई, बल्कि पैसा बचाने के फेर में उसेे दफनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। 

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