बच्चों का व्यक्तित्व विकास
माता-पिता के रूप में आप अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों के साथ अपने बच्चे का व्यवहार नाप कर बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इसका निरीक्षण कर आप समझ सकते हैं कि क्या वे किसी ग्रंथि का शिकार हो रहे हैं या अधिक अंतर्मुखी या बहिर्मुखी बन रहे हैं। जिन्हें लघुता ग्रंथि है, वे बच्चे अपने से छोटों के साथ ज्यादा बातचीत करेंगे और बड़ों से भागते फिरेंगे। जिन्हें गुरु ता ग्रंथि है, वे छोटों को नकार कर केवल अपने से बड़ों के साथ ही रिश्ता रखेंगे। थोड़ी-बहुत धार्मिकता, नैतिक और अध्यात्मिक मूल्य बच्चों पर प्रभाव डाल सकते हैं। हर रोज जब तुम काम से वापिस लौटो, उनके साथ बस खेलो या हंसो। जितना हो सके, पूरे परिवार के साथ बैठ कर भोजन करो।
रविवार को बच्चों को बाहर ले जाओ, उनको कुछ मिठाई दो और उसे सबसे गरीब बच्चों में बांटने को कहो या साल में एक-दो बार उन्हें पिछड़ी बस्ती में ले जाओ और कोई सामाजिक सेवा करने को कहो। थोड़ा-बहुत गाना, मंत्रोच्चार, ध्यान और प्राणायाम करवाओ। संशोधन से साबित हुआ है कि कैसे प्राणायाम और ध्यान बालक के कार्य-संपादन में सुधार लाते हैं। वे अधिक शांत, सतर्क, सचेत महसूस करते हैं और समझने में अधिक योग्य बन जाते हैं।
माता-पिता को सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों की बुद्धि पूर्वाग्रहों और निषेधों से अटक न जाए. आज के जमाने में लोगों में जाति, धर्म, व्यवसाय और कई सारी चीजों के प्रति पूर्वाग्रह है। बच्चे सभी के साथ बातचीत करने में और मैत्रीपूर्ण रहने में निपुण होने चाहिए। आवश्यक है कि बच्चों को अपनी दृष्टि विशाल और जड़ें मजबूत करने के लिए प्रदर्शन की दिशा मिले. आधुनिकीकरण एक कुदरती घटना है।
यह ऐसे है मानो पेड़ की शाखाएं फूट रहीं हों। इसीलिए माता-पिता को सुनिश्चित करना है कि जब तक बालक की शाखाएं फूटने लगें, उसकी जड़ें मजबूत हों। बालक एक बुद्धिमान और पूर्वग्रह रहित व्यक्ति के रूप में बड़ा हो, इसके लिए एक सांस्कृतिक और अध्यात्मिक बुनियाद का होना बहुत आवश्यक है।