ज्योतिर्गमय

Update: 2014-08-04 00:00 GMT

करें सेवा, पाएं मेवा


कवि रहीम हर रोज दान दिया करते थे। उनके पास जितने लोग आते थे, वे सभी को मुठ्ठी भर सिक्के दे दिया करते थे। संयोगवश एक दिन किसी दरबारी ने देखा कि एक आदमी दो-तीन बार पंक्ति में आकर दान लेकर चला गया।
उस दरबारी ने रहीम से कहा कि आप आंखें नीचे करके दान दिए जा रहे हैं, कई लोग बार-बार दान ले रहे हैं। तब रहीम ने कहा-
देवनहारा और है
जो देता दिन रैन,
लोग भरम हम पै करैं
या विधि नीचे नैन ।
बिना स्वार्थ परोपकार, गीता में कहा गया है कि यदि श्रद्धा नहीं है, तो दान नहीं दो। अश्रद्धा से किया गया यज्ञ, दान, तप और कर्म सभी व्यर्थ हो जाते हैं। प्रसन्न और विनम्र होकर ही दान देना चाहिए। दान देने से आपकी क्षुद्र बुद्धि सद्बुद्धि में बदल जाती है और आपकी आत्मा भी सुखी होती है। सेवा नि:स्वार्थ होनी चाहिए। अथर्ववेद में कहा गया है हे मानव, तू सैकडों हाथों से कमा और हजारों हाथों से दान कर। गीता को अपने जीवन में उतारने वाले स्वामी विवेकानंद ने कहा था द्वेष और कपट को त्याग दो। संगठित होकर दूसरों की सेवा करना सीखो, हमारा देश हमसे यही मांग करता है। आध्यात्मिक उन्नति हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य ही लोक-कल्याण होना चाहिए। हम रोज देखते हैं कि दीप खुद को जितना अधिक जलाता है, ज्योति उतनी ही अधिक प्रखर होती है। जडें स्वयं को जमीन में जितनी अधिक गहराई में दबाती हैं, वृक्ष उतने ही अधिक मजबूत और ऊंचे उठते हैं। जीवन को आधार और ऊर्जा प्रदान करने वाले सभी घटक परोपकार में ही जुटे रहते हैं। हम दूसरों का जितना अधिक परोपकार करेंगे, हमारी आध्यात्मिक उन्नति उतनी ही अधिक होगी। साथ ही, राष्ट्र और विश्व का कल्याण भी होगा। महर्षि दयानंद कहते हैं कि परोपकार मानव जीवन का सौंदर्य और श्रृंगार है। यदि आप सच्चे मन से ईश्वर की पूजा करना चाहते हैं, तो खूब सेवा करें, भूखे को भोजन दें, प्यासे को पानी पिलाएं। अशिक्षितों को विद्या दें, दीन-दुर्बलों की सहायता करें। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपको मेवा, यानी ईश्वर का आशीर्वाद जरूर मिलेगा। मानव जीवन का सच्चा उपयोग सेवा में है। सेवा से मनुष्य का अंत:करण जितना निर्मल होता है, उतना किसी दूसरे उपाय से नहीं।
यदि हम अपने व्यवहार में दूसरों के प्रति दया-भाव रखते हैं, तो इससे बढ़कर कोई धर्म नहीं है। दूसरी ओर, यदि हम किसी को पीड़ा पहुंचाते हैं, तो उसके समान कोई पाप नहीं है। दयालु हृदय वाले व्यक्ति की तुलना एक फव्वारे से की जा सकती है, जिसके प्रभाव से हमारे आसपास के सभी पेड़-पौधे खिल उठते हैं।

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