ज्योतिर्गमय

Update: 2014-08-09 00:00 GMT

जीवन का अंधेरा, उजाला, आशा, निराशा


कुछ लोग जीवन में हमेशा अंधेरा ही देखते हैं। उन्हें सूर्य की रोशनी अच्छी नहीं लगती। मन का अंधेरा ही हमें बाहर दिखाई पड़ता है। यह सच है कि जीवन कठिनाइयों से, समस्याओं से भरा रहता है पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका मुकाबला कैसे करें। आशा विश्वास का संचार करें या निराशा उदासी का। ऐसे लोगों के लिए एक कहावत है फलां आदमी तीस साल की उम्र में मर गया था पर अस्सी साल की उम्र में दफनाया या जलाया गया। अब आप सोचिये कि पचास साल वह कैसे जिया होगा। कुछ लोग निराशा, उदासी, चिन्ता, भय, अनिश्चय, अनिर्णय में भी इतना लंबा समय बिता देते हैं भले ही बीमार रहते हों, असमर्थ, अस्वस्थ रहते हों पर जीवन जब तक है सब सहते हुए जीना ही पड़ेगा। कैसे जीवन आदमी जी रहा है। कोई उत्साह, उमंग नहीं प्रसन्नता नहीं शांति नहीं, स्वास्थ्य पर प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं। कहते है विषमताएं नदी की तरह उसे बिना विचलित किये समा जाये तो समुद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता वह स्थिर रहता है हां कभी-कभी उसमें ऊंची लहरें उठती है पर फिर शांत हो जाती हैं।
यह एक प्रश्न है कि हम अपना दिन कैसे बिताते हैं। खुश रहकर या चिन्ता भय निराशा में। प्रकृति में सब कुछ बिखरा पड़ा है हमें जो चाहिए मिल सकता है। थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ती है सभी इंसानों के पास चौबीस घंटे ही रहते हैं। उसका उपयोग आप कैसे करते हैं यह आपके ऊपर है। समय को काटो मत उसको जियो, नहीं तो वह तुम्हें काटेगा। हर दिन को भगवान का एक नायाब तोहफा समझो उसका भरपूर उपयोग करों। मुस्कराओ हंसो दूसरों को खुश रखो। जो दोगे वह कई गुना होकर तुम्हारे पास लौट आयेगा। कहते हैं जो दूसरों के लिए जीता है भगवान उसकी चिंता स्वयं करता है। जो मिलता है भगवान देता है उसे स्वीकार करें यह हमेशा सोचों कि तुम्हे तुम्हारी योग्यता से ज्यादा भगवान ने दिया है शिकायत मत करें मांगों मत भिखारी मत बनों ऐसा ओशो कहते हैं। जीवन में सफलता और सुखी जीवन जीना इतना कठिन नहीं है जितना आम आदमी समझता है बस हमारा नजरिया ठीक होना चाहिए तो नजारे अपने आप बदल जायेगें। थोड़ा, पढिय़े, थोड़ा चिन्तन करिये सब कुछ ठीक हो रहा है या नहीं है तो ठीक हो जायेगा। अपने विश्वास को ढीला न होने दें। जैसा हम सोचेंगे विश्वास करेंगे वैसा होगा। या हम वैसे बनेंगे यह एक शाश्वत सत्य है।
हम बहुत से स्थापित सत्यों को नकारकर जीते हैं। नकारने से भी सत्य सत्य ही रहता है। हमारे सोच से दुनिया नहीं बदलती पर हम अपने आप को बदल सकते हैं। सोच का अच्छा या बुरा प्रभाव अवश्य पड़ता है यह दुनिया सोच का ही खेल है। जो आपाधापी मारकाट, आतंक हो रहा है हत्यायें हो रही हैं सभी सोच का ही परिणाम है। नकारात्मक सोच का। बहुत बड़ी दुनिया है लोग हैं अलग अलग सोच हैं कोशिशें होती है पर कुछ नहीं बदल रहा है। देखें कब क्या होता है जो भी हो हमें हमेशा अच्छे की आशा रखनी चाहिए। जब जो होना होगा। इंसान चाहे तो क्या होता है होता वहीं है जो मंजूरे खुदा होगा। पर मन में प्रश्न उठते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा हैं। प्राकृतिक विपदाओं की बात छोड़ें पर इंसान इंसान को मार रहा है। क्यों क्या चाहता है। कब यह अंधेरा उजाले में बदलेगा। आशा रखें निराश न हों। यही मेरा संदेश है।


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