उच्चतम न्यायालय ने 214 कोल ब्लॉक का आवंटन किया रद्द

Update: 2014-09-24 00:00 GMT

नई दिल्ली | उच्चतम न्यायालय ने कोयला घोटाले को लेकर बुधवार को बड़ा फैसला दिया है। चार सरकारी कंपनियों के कोल ब्‍लॉक्‍स आबंटन को छोड़कर कोर्ट ने सभी खदानों के आबंटन को रद्द कर दिया है। जिन कोल ब्‍लॉक्‍स के आबंटन को रद्द करने का फैसला सुनाया गया है, वह सभी निजी कंपनियों के हैं। शीर्ष कोर्ट ने कुल 214 कोल ब्‍लॉक्‍स आबंटन को रद्द किया है। वहीं, कोर्ट ने कोल ब्‍लॉक्‍स की नीलामी के लिए छह महीने के लिए वक्‍त दिया है। यानी 46 कोल ब्‍लॉक्‍स की अब दोबारा नीलामी की जाएगी।
न्यायालय ने खानों के बारे में आज दोपहर दो बजे अपना निर्णय सुनाया। गौर हो कि न्यायालय ने इन खानों के आवंटन को अवैध करार दिया था। वहीं सरकार का दावा है कि इसमें 2 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को दिये अपने आदेश में कहा था कि 1993 से केंद्र की विभिन्न सरकारों द्वारा आवंटित कोयला खानें अवैध और मनमाने तरीके से आवंटित किए गए।
गौर हो कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने के शुरुआत में अपने फैसले में कहा था कि नीलामी व्यवस्था से पहले 1993 से 2010 के बीच राजग और संप्रग सरकारों द्वारा किए गए कोयला ब्लाकों के सभी आबंटन गैरकानूनी तरीके से 'तदर्थ और लापरवाही' के साथ तथा बगैर 'दिमाग लगाए' किए गए। कोर्ट की खंडपीठ ने 218 कोयला खदानों के आबंटन की जांच पड़ताल की और कहा था कि 'राष्ट्रीय संपदा के अनुचित तरीके से वितरण की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता नहीं थी' जिसका खामियाजा लोकहित और जनहित को चुकाना पड़ा। वहीं, केंद्र सरकार ने कोयला खदानों के आबंटन के मामले में फैसला उच्चतम न्यायालय पर छोड़ दिया था। न्यायालय ने अपने फैसले में इन खदानों के आबंटन को गैरकानूनी घोषित किया था। सरकार ने इसके साथ ही न्यायालय से कहा था कि चालू वर्ष में पांच करोड़ टन कोयले का उत्पादन करने के लिये करीब 40 खदानों में उत्पादन हो रहा है और छह अन्य खदानें भी इसके लिये तैयार हैं। कोयला मंत्रालय ने इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल किया है जिसमें अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के एक मई के इन बयानों को भी शामिल किया कि न्यायालय द्वारा गैरकानूनी घोषित किये गये आबंटनों को रद्द किये जाने पर सरकार को ‘आपत्ति नहीं’ है।
गौर हो कि जनहित याचिकाओं में शुरू में करीब 194 कोयला खदानों के आबंटन में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुये कहा गया था कि संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान हुये दिशानिर्देशों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया लेकिन बाद में शीर्ष अदालत ने 14 जुलाई, 1993 से किये गये आबंटन को जांच के दायरे में ले लिया था।


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