यह कैसी सहिष्णुता...
आज एक समाचार पढ़ कर कुछ असहिष्णुता जागी कि भारत सरकार ने अफगानिस्तान के लिए 750 करोड़ रुपये से नया संसद भवन बनवाया है और इसका उद्घाटन (शुक्रवार - जुम्मे के दिन) 25 दिसंबर को हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी कर रहे हैं।
आपको यह अवश्य पता होना चाहिए कि भारत सरकार पिछले लगभग 40-45 वर्षो से विभिन्न योजनाओं द्वारा इस्लामी राष्ट्र अफगानिस्तान की निरंतर सहायता करती आ रही है। गत फरवरी 2013 के समाचारों के अनुसार अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत सरकार द्वारा लगभग 84 परियोजनाएं अनेक क्षेत्रों में चल रही थी ।
इसके अतिरिक्त भारत सरकार के सांस्कृतिक संबंधों की संस्थाओं द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 1000 छात्रवृत्तियां अफगानी छात्रों को 3 वर्षो के लिए भारत में आकर अध्ययन करने के लिए भी दी जाती है। परंतु जिहाद के बहाने तालिबानी आतंकी अफगानिस्तान में हमारे दूतावास व अन्य परियोजनाओं पर समय-समय पर हमले करके जान-माल को हानि पहुंचाते रहते हैं। इन आतंकी हमलों में कितने भारतीयों की हत्या व कितनी आर्थिक हानि हुई के आंकड़े अभी नहीं दे पा रहा हूं ।इसपर भी अति गंभीर व विचारणीय विषय यह है कि जो भारत उपरोक्त अरबों रुपये की सहायता के अतिरिक्त अफगानिस्तान के लगभग बीस लाख स्कूली बच्चों को प्रतिदिन उच्च प्रोटीनयुक्त बिस्कुट वितरित करता हो उसके साथ अमानवीय अत्याचार क्यों?
संभवत: कुछ अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की विवशता से हमारी सरकार ऐसा कर रही हो पर क्या यह सहिष्णुता सर्प को दूध पिलाने के समान नहीं? अनेक तालिबानी हमारे देश में आतंकी घटनाओं में लिप्त पाये जाते हैं फिर भी हम उनकी अप्रत्यक्ष रुप से तन, मन व धन से निरन्तर सहायता करते आ रहे हैं। अफगानिस्तान के विकास में भारत का सर्वश्रेष्ठ आर्थिक योगदान है पर इसका मूल्य कभी भी किसी मुस्लिम देश व आतंकवादी संगठनो ने नहीं समझा।
क्या मानवीय आधारों पर जीने का अधिकार केवल मज़हबी आतंकियों के लिए ही निर्धारित किये जाते रहेंगे तो फिर सभ्य समाज को कौन उन जिहादियों के कोप से बचा पायेगा? मुस्लिम देशो में शरीयत की अमानवीय कठोरता से मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। जब गैर मुस्लिमों को मुसलमान बनाये या इस्लामिक दुनिया से ही बाहर कर देने की प्रक्रिया जारी है, तो ऐसे में सरकार को किसी कुटनीति के साथ ऐसे अतिवादी मुस्लिम देशों से व्यवहार रखना चाहिये।
विनोद कुमार सर्वोदय