भारत-ऑस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु सहयोग करार को मोदी कैबिनेट की मंजूरी

Update: 2015-12-30 00:00 GMT


नयी दिल्ली: पिछले महीने प्रभावी हुए भारत-ऑस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु सहयोग समझौते को आज केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। करार को लागू कराने के लिए जरूरी प्रशासनिक इंतजाम के साथ बीते 13 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौता प्रभावी हुआ था।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, ऑस्ट्रेलिया के साथ किए गए ईंधन आपूर्ति इंतजामों से भारत में परमाणु उर्जा के विस्तार के समर्थन से उर्जा सुरक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा। इस करार पर पिछले साल दस्तखत किए गए थे। अमेरिका और फ्रांस के साथ भी ऐसे ही करार किए जा चुके हैं। परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का अनुमोदन न करने के बावजूद अपने परमाणु कार्यक्रम की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता हासिल करने की दिशा में भारत का यह एक अहम कदम है।
भारत में बिजली उत्पादन में परमाणु उर्जा का योगदान महज तीन फीसदी है। भारत एनपीटी पर दस्तखत किए बिना ऑस्ट्रेलिया से यूरेनियम खरीदने वाला पहला देश होगा। असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर भारत और ऑस्ट्रेलिया ने 2012 में वार्ता शुरू की थी। यह वार्ता उस वक्त शुरू हुई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने उर्जा संकट से जूझ रहे भारत को यूरेनियम बेचने पर लंबे समय से लगी पाबंदी हटा दी थी।
साल 1998 में परमाणु परीक्षण करने के बाद भारत को पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था। लेकिन 2008 में अमेरिका के साथ हुए एक करार के बाद ये बंदिशें हटा ली गईं और अमेरिका ने भारत के बढ़ते आर्थिक बोझ और सैन्य उद्देश्यों के लिए असैन्य ईंधन का इस्तेमाल करने के खिलाफ इसके सुरक्षा उपायों को मान्यता दी थी। भारत के छह स्थानों पर दो दर्जन से कम छोटे रिएक्टर हैं जिनकी क्षमता करीब 4,780 मेगावॉट यानी इसकी कुल उर्जा क्षमता की दो फीसदी है।
भारत 2032 तक अपनी परमाणु क्षमता बढ़ाकर 63,000 मेगावॉट करने की योजना बना रहा है। करीब 85 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत से लगभग 30 रिएक्टरों का निर्माण कर भारत अपने इस लक्ष्य को पूरा करने की तैयारी में है। अभी भारत 11 देशों के साथ परमाणु उर्जा समझौते कर चुका है। वह फ्रांस, रूस और कजाखस्तान से यूरेनियम का आयात करता है। ऑस्ट्रेलिया में करीब 40 फीसदी यूरेनियम का भंडार है और वह हर साल करीब 7,000 टन यूरेनियम निर्यात करता है।

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