आरके श्रीवास्तव ने न्यायालय में दी चुनौती
प्रभारियों के भरोसे चल रही है निगम में व्यवस्था
ग्वालियर, विशेष संवाददाता। नगरीय प्रशासन मंत्रालय, राज्य शासन द्वारा नगर निगम,ग्वालियर के संदर्भ में जारी तबादला आदेशों से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। अपर आयुक्त आर के श्रीवास्तव को उपायुक्त बनाए जाने के खिलाफ उन्होंने उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती ही दे डाली है। उधर निगम में पदस्थ किए गए एक अन्य अधिकारी भी नगरीय प्रशासन के आदेश से खुश नहीं हैं। हालांकि उन्होंने अपनी आमद दर्ज करा दी है।
नगरीय प्रशासन मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में अपर आयुक्त आरके श्रीवास्तव को उपायुक्त बनाकर जबलपुर भेजा है। स्वयं को पदावनत मानते हुए श्रीवास्तव ने इस आदेश को उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में चुनौती दी है। उनकी याचिका पर फैंसला भले ही कुछ भी हो, लेकिन अपर आयुक्त से उपायुक्त बनाए जाने से तबादला आदेश को चुनौती देने का आधार तो मिल ही गया। उनकी याचिका पर गुरुवार को सुनवाई थी, लेकिन सुनवाई न होने से मामला आगे बढ़ गया है। इसी तरह एक अन्य आदेश में उपायुक्त के रूप में ग्वालियर पदस्थ किए गए पारे भी नाराज बताए गए हैं। उनकी नाराजगी के पीछे तर्क यह है कि वे इंदौर से ग्वालियर में अपर आयुक्त बनाकर भेजे गए अभय राजनगांवकर से वरिष्ठ हैं फिर उन्हें उपायुक्त क्यों बनाया गया?
तीन अपर आयुक्त
वर्तमान में निगम के अंदर अपर आयुक्त स्तर के तीन अधिकारी हो गए। मोहन लाल दौलतानी पहले से ही अपर आयुक्त हैं। संदीप माकिन और अभय राजनगांवकर को अपर आयुक्त बनाकर हाल ही में शासन ने ग्वालियर पदस्थ कराया है। राजनगांवकर पूर्व में नगर निगम में उपायुक्त तथा माकिन ग्वालियर में ही एसडीएम के रूप में पदस्थ रह चुके हैं। हां अगर श्रीवास्तव को स्थगन आदेश मिल गया तो वे चौथे अपर आयुक्त हो जाएंगे। ऐसे में अपर आयुक्तों के बीच खींचतान की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
यह पद हैं खाली
नगर निगम में सहायक आयुक्त के आठ पद हैं, लेकिन यह खाली हैं। उपायुक्त स्तर के चार पद हैं। इनमें उपायुक्त एनके गुप्ता जून माह में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। जगदीश अरोरा, प्रदीप श्रीवास्तव तथा सत्यपाल सिंह चौहान प्रभारी हैं। वार्ड एक से पार्षद जगत सिंह कौरव कहते हैं कि निगम में बेहतर कामकाज के लिए सभी पदों को तुरंत भरा जाना चाहिए। रिक्त पदों को लेकर आयुक्त से चर्चा नहीं हो सकी जबकि अपर आयुक्तों ने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा।