देश को उन्नतशील बनाने के लिए गांवों की दशा व दिशा बदलना जरूरी

Update: 2016-01-07 00:00 GMT

कार्यशाला में कृषि वैज्ञानिकों ने दिया प्राकृतिक खेती पर जोर

झांसी। प्राकृतिक कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित कार्यशाला का आयोजन चारा अनुसंधान केंद्र ग्रासलैड के परिसर में किया गया। इस दौरान किसानों को खेती के माध्यम से अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जानकारी विषय विशेषज्ञों ने दी।
ग्रासलैंड स्थित चारा अनुसंधान केंद्र में उन्नत भारत अभियान के अंतर्गत केवट संस्था की ओर से बुंदेलखंड स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के प्रारंभिक चरण में कृषि वैज्ञानिक डा. वीके सिंह से दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया। कार्यशाला में मौजूद किसानों को खेती से अर्थ व्यवस्था को जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि अब इस व्यवसायीकरण के दौर में किसानों को अपने तौर करीकों में बदलाव लाने की जरुरत है। अगर वह काम के पुराने धर्रे से कुछ  हट कर खेती में नया करने का प्रयास करें तो उन्हें काफी फायदा होगा। खेती बेहतर व्यवसाय का रूप लेगी। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार आएगा। उन्हें तब निर्बल नहीं सबल के रूप में देखा जाएगा। उन्होंने बताया कि हमारे देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। वहीं, देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि अगर हमे अपने देश को उन्नतशील बनाना है तो सबसे पहले गांवों की दशा और दिशा दोनों को बदलना होगा। गांव की माटी में जब फसल लहलहायेगी तभी संपन्नता और समृद्धि कदम चूमेगी।
उन्होंने प्राकृतिक खेती पर जोर डालते हुए किसानो को बताया कि आधुनिकता की दौड़ में सब कुछ बदलता चला जा रहा है। पारंपरिक खेती को हम विसरते जा रहे हैं। वहीं, प्रकृतिक खेती के प्रति अज्ञानता वश कुछ नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने किसानो से कहा कि आप प्राकृतिक खेती जैसे बागवानी के माध्यम से अच्छी पैदावार ले सकते हैं। खेतों में ऐसे फलदार वृक्ष लगायें जिससे पेड़ों पर लगने वाले फल को बेच कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर  सकें और खेत में आसानी से अन्य फसल भी उगा सकते हैं। इसे कहते हैं आम के आम और गुठलियों के दाम। वृक्ष को एक बार लगाने के बाद उसे हटाने की जरुरत नहीं है वह आप को फल देता रहेगा, इसके साथ जो इसके पत्ते आदि टूट कर गिरेंगे वह जमीन की उर्वरा शक्ति को ताकतवर बनाएंगे। उसमें रासायनिक खाद की अधिक जरुरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड में खासतौर पर अर्थव्यवस्था को जोडकर प्रकृतिक खेती करने में ही किसान को अधिक फायदा है। इस दौरान जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से सैकड़ों किसानों ने कार्यशाला भाग लेकर खेती संबंधी अनेक जानकारियां लीं।
वहीं राजकीय भूमि संरक्षण प्रशिक्षण केन्द्र पर नेशनल मिशन ऑफ ऑयल सीडस अन्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण मऊरानीपुर में दिया गया। जिसमे तिलहनी फसलों की उत्पादकता एवं उत्पादन बढानें के लिए किसानों को जागरूक करते हुयें फसल के उत्पादन मे वैज्ञानिक तकनीक अपनाते हुयें खेती करने को कहा गया जिससे तिलहनी फसलों की पैदावार बढ सकने के साथ किसानों की आर्थिक स्थिति मे सुधार हो सके । दलहन की ओर पिछले कई साल से पैदावार मे कमी आयी है जिससे खाद्यान तेल के बाजार मूल्य काफी बढ गये है। इस लिए प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि तिलहनी की खेती करने से आय मे वृद्धि हो सके । जिससे सरकार इस ओर विशेष रूप सेे घ्यान दे रही है ।प्रशिक्षण दाता के रूप मे शैलेन्द्र कुमार शाही केन्द्र अध्यक्ष , डा0 बीके सचान , डा0 प्रमोद सोनी, डा0 केके पटेल , रामकिशुन राजपूत आदि मौजूद रहे।  कराये जा रहे प्रशिक्षण की किसी भी किसान को कानों कान खबर नही दी गई सिर्फ अधिकारी कर्मचारियों ने अपने चहेते लोगों को बुलाकर प्रशिक्षण सम्पन्न कराया । जबकि प्रतिभाग मे सामिल होने आये लोगों को नगद मानदेय का वितरण नहीं किया गया। केन्द्राध्यक्ष से इस सम्बंध मे जानकारी की गयी तो उन्होने बताया कि 12 जनवरी से होने बाले प्रशिक्षण के लिए किसानों का चयन किया जाने लगा है लेकिन सीमित स्थान होने पर उन्ही लोगों को बुलाया जायेगा जों कृषि कार्य मे रूचि रखते हो ।

Similar News