अनिल शर्मा / भिण्ड। वेशक भिण्ड को नकल के लिए आप बदनाम करते रहें, लेकिन हकीकत में परीक्षाओं में जो नकल चलती है वह स्थानीय लोगों के लिए नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों व सीमावर्ती प्रदेशों से जो बच्चे भिण्ड परीक्षा देने आते हैं जिनसे नकल के नाम पर माफियाओं द्वारा मोटी रकम बसूली जाती है और बदले में नकल की माकूल व्यवस्था मुहैया कराने का बायदा किया जाता है। जिनकी बजह से आज भिण्ड बदनाम है। यदि वाकई में जिलाधीश मानते हैं कि नकल को सामाजिक जागरुकता व जन भागीदारी से रोका जा सकता है तो वे सबसे पहले ऐसे ग्रामीण परीक्षा केन्द्रों को चिन्हित करें जहां पिछले वर्षों में परीक्षा के दौरान पथराव हुआ हो या फिर अन्य कोई हंगामा, सामूहिक नकल की स्थिति बनी हो, उन परीक्षा केन्द्रों के ग्रामीणों को विश्वास में लेकर सभा आयोजित करें और पहले उनकी समस्याएं सुनें फिर उनसे बायदा लें कि नकल को रोकने में वे प्रशासन का सहयोग करेंगे।
भिण्ड जिले को एक अंतराल के बाद अच्छा प्रशासनिक अधिकारी मिला है, उनके अन्दर गरीबों के लिए कुछ अच्छा करने की तड़प भी है, नौजवान होने के कारण जोश में भी कोई कमी नहीं है, सोशल मीडिया के जरिए भी यदि कोई समस्या उनके सामने लाई जाए तो उसका तत्काल निराकरण करने के लिए तत्पर रहते हैं, कार्य के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण तत्काल क्रिया की प्रतिक्रिया देना उनकी अच्छी खूबी है, भिण्ड में पदार्पण हुआ तो उनके सामने नकल रोकना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य प्रस्तुत किया गया क्योंकि इसमें दौलत और शेहरत दोनों ही मिलती हैं। पर नकल माफियाओं के लंबे-लंबे हाथ बहुत ऊंचाईयों तक हैं, इससे निपटने के लिए तमाम चक्रव्यूह के दरवाजे तोडऩे होंगे, जो नामुमकिन तो नहीं मुश्किल जरूर हैं। ऐसे में सबसे सरल व आसान तरीका सुझाया गया कि नकल माफियाओं से भिडऩे की बजाए सामाजिक जागरुकता के माध्यम से नकल को रोका जाए। भिण्ड की अच्छी सेहत के लिए पहली प्राथमिकता में नकल विरोधी जागरुकता अभियान मुहिम को चुना गया, सो इन दिनों राष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दे पर्यावरण जागरुकता, पानी बचाओ, बेटी बचाओ, रासायनिक उर्वरकों से खेती बचाओ जैसे मुद्दों को पीछे धकेलकर नकल विरोधी जागरुकता मुहिम जोरदारी से चल रही है। परीक्षा का समय नजदीक है फिर भी विद्यालयों में नकल विरोधी जागरुकता रैली, विचार गोष्ठी, कार्यशाला आयोजित करने की होड़ सी लगी हुई है। लगता है कि शिक्षा महकमे ने सारे काम छोड़कर परीक्षा होने तक अभियान में जुटे रहने की ठान ली है, डीपीसी, बीआरसी, जनशिक्षक व विद्यालयों के प्रचार्य, प्रधानाध्यापक, शिक्षक भी रैलियों में व्यस्त हैं। सोशल मीडिया, इलैक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया में भी खूब स्थान मिल रहा है। सोशल मीडिया पर अच्छे कमेंंट से खुशी भी मिलती है, यदि जिलाधीश का कमेंट आ जाए तो कमेंट्स की लाइन लग जाती है। कुछ बुद्धिजीवियों, मीडिया कर्मियों के कमेंट हैं कि इसके दूरगामी अच्छे परिणाम आएंगे।
नकल एक बुरी प्रवृत्ति के साथ-साथ कलंक का टीका है जो अन्य सामाजिक बुराईयों की तरह विकराल समस्या का रूप ले रही है। इसके पक्ष में कौन सा वर्ग है यह तो नहीं पता लेकिन जिस तरीके से वर्तमान में नकल विरोधी जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है उसमें सकल समाज को टारगेट बनाने के साथ-साथ पालक को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा हे, मुझे नहीं लगता कोई पालक चाहेगा कि उसका बेटा नकलची कहलाए, कौन सा पालक चाहेगा कि उसके बेटे या बेटी के पास ऐसी डिग्री हो जो योग्यता के मापदण्डों पर खरी न उतरे, हो सकता है कि सौ में से कोई एक पालक हो जो इस तरह की मानसिकता रखता हो, लेकिन एक प्रतिशत के लिए नकल जैसी आपराधिक प्रकृति को सामाजिक समस्या बताकर उसके असली कारणों को नजर अंदाज करना उचित नहीं ठहाराया जा सकता, यहां के लोगों को नकल की मानसिकता से जोडऩा भिण्ड के गौरवशाली इतिहास के साथ कुठाराघात है। जो भिण्ड की माटी के प्रत्येक सपूत के लिए शर्मनाक है।