*डॉ. निवेदिता शर्मा
भा रत के शहर या ग्रामीण परिवेश में कहीं भी चले जाएं, धनार्जन और उसके महत्व को लेकर बहुधा सभी ओर यही सुनने में आएगा कि अर्थ बिना सब व्यर्थ है। अर्थ का महत्व कितना अधिक है, इसकी एक बानगी विश्व की सबसे पुरानी किताब सिद्ध हो चुकी ऋग्वेद में देखकर उसे पढ़कर समझी जा सकती है, जिसमें कि श्री सूक्त के अंतर्गत धनं अग्नि: धनं वायु: धनं सूर्यो धनं वसु:। धनं इन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना।। तक कहा गया है। इस संदर्भ में ऐतिहासिक परिवेश देखें तो भारत तभी तक विश्व गुरु रहा है जब तक वह आर्थिक रूप से भी शक्ति सम्पन्न था। जैसे ही इस शक्ति का ह्रास हुआ, प्राय: यही देखने में आया कि जो देश भारत के सामने हाथ जोड़कर खड़े रहते थे और जो भारत को अपना गुरू मानते हुए उसकी सदैव वंदना करते थे वे भी अर्थ के अभाव के समय आंख दिखाने से पीछे नहीं रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण चीन है, लेकिन अब दिन बदल रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार में आने के पहले भारतवासियों को अच्छे दिन आने की जो दिलासा दी थी और यह भरोसा दिलाया था कि यदि हम सरकार में आए तो देश के अच्छे दिन अवश्य आएंगे। वस्तुत: वे अच्छे दिन आने की शुरुआत हो चुकी है। आज दुनिया के सामने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सीधे तौर पर अच्छे दिनों की धमक सुनाई देने लगी है। बात सिर्फ इतनी नहीं है? कि भारत के प्रधानमंत्री विश्व के किसी देश के दौरे पर जाते हैं तो उनका स्वागत किस तरह होता है। बेतहाशा उन्हें सुनने के लिए उमड़ती भीड़ हो या सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक झलक देखने के लिए आई हुई तमाम जनसंख्यात्मक जनता की बात हो। अथवा अमेरिका के प्रेसीडेंट बराक ओबामा से बराबर के स्तर पर आंखों में आंखें डालकर उनके कंधे पर हाथ रखकर हमारे प्रधानमंत्री की ली जा रही सेल्फी तथा बाते हों । इसके इतर आज बात यह है कि शीघ्र ही हमारे आर्थिक शक्ति केंद्र बनने को दुनिया ने भांप लिया है। विश्व के तमाम देशों ने यह समझ लिया है? कि अब भारत को आर्थिक शक्ति बनने से रोका जाना संभव नहीं।
आज दुनिया के किसी भी देश के महाशक्ति बनने का इतिहास उठाकर देख लिया जाए। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैण्ड रूस, चीन या अन्य किसी देश को ले लिया जाए, सभी देश आर्थिक रूप से पहले सम्पन्न हुए, बाद में महाशक्ति के रूप में उनका वैश्विक प्रकटीकरण सामने आया है। आर्थिक शक्ति बनने का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि दुनिया के धन का कुल 70 प्रतिशत एकाधिकार या प्रवाह अधिकतम 10 देशों के पास होने के कारण विश्व के लगभग अन्य सभी राष्ट्रों को अपने हित पूरे करने के लिए या किसी प्रकार के प्राकृतिक संकट आ जाने के बाद इन देशों से मिलने वाली आर्थिक कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें भी जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में मुद्रा की स्थिति डांवाडोल होती है, और आर्थिक संकट के बादल मंडराते हैं तो वह भी चीन जैसे उद्यमशीलता की मिसाल बन चुके के सामने हाथ फैलाने के लिए मजबूर हो जाता है, फिर भले ही वह कई देशों को पालने वाला रहा हो। ऐसे वर्तमान में कई देशों के परस्पर के उदाहरण है, जिसमें कि अंतत: वही ताकतवर माना गया जो आर्थिक रूप से सम्पन्न देश रहे हैं।
वर्तमान परिदृष्य भारत के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है । लगता है कि नियति ने भारत के लिए इस तरह के माहौल का सृजन कर दिया है, सिर्फ कुछ प्रयास इस दिशा में सार्थक और प्रभावी किए जाने शेष है। इस संदर्भ में विश्व बैंक के जारी हालिया आंकड़ें निश्चित हर भारतीय का उत्साहवर्धन करने वाले हैं। विश्व बैंक की ताजा वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट में सीधेतौर पर बताया गया है कि भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थान आकर्षक बना रहेगा और 2016-17 के दौरान उसकी आर्थिक वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहेगी।
विश्व बैंक कहता है कि यह वृद्धि दर और बढ़ सकती है लेकिन कम नहीं होगी। उसके अनुसार ''दुनिया के अन्य विकासशील देशों के मुकाबले भारत में आर्थिक वृद्धि की दर लगातार बेहतर बनी रहेगी। निवेशकों की धारणा मजबूत बनी रहने के साथ कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट के फलस्वरूप वास्तविक आय पर सकारात्मक असर पडऩे से इसको बल मिलेगाÓÓ । यह रिपोर्ट भारत के बाजार की इस बात के लिए प्रशंसा करती है कि वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार चढ़ाव के बावजूद पिछले वर्ष के दौरान भारतीय मुद्रा और शेयर बाजार ने अपनी बेहतर क्षमता का प्रदर्शन किया है। यहां भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार को फिर से मजबूत किया है और इस दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगातार सकारात्मक बना रहा है।
इसमें यहां तक बताया गया है कि भारत में जारी वित्तीय मजबूती के प्रयासों से केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार प्रतिशत के करीब आ चुका है। विश्व बैंक की हर छह माह में जारी होने वाली यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह दिन-प्रतिदिन भारत अर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। अगले दो साल के दौरान इसके 7.9 प्रतिशत वृद्धि हासिल करने की सकारात्मक उम्मीद यहां दर्शायी गई है।
साथ ही यह रपट भारत के पड़ौसी देश और प्रतिस्पर्धी चीन के बारे में भी बहुत कुछ कहती है । इसके अनुसार आर्थिक वृद्धि वर्ष 2016 में 6.7 प्रतिशत और उसके बाद 2017 और 2018 दोनों साल में 6.5 प्रतिशत रहेगी। यानि कुछ चमत्कार हो जाए तो बात अलग है, नहीं तो भारत ही विश्व बैंक की नजर में आज वो देश है जो कि समूचे एशिया क्षेत्र में प्रभावशाली अर्थव्यवस्था के रूप में सबसे अधिक तेजी से विकास करने वाले देश के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल होगा। पड़ौसी देश पाकिस्तान के संबंध में भी यही बात समझी जा सकती है। इस साल पाकिस्तान घटक लागत आधार पर- 4.5 प्रतिशत वृद्धि ही प्राप्त करने में सफल हो सकेगा, जैसा कि वैश्विक आंकड़े बता रहे है। यानि की कुल मिलाकर उभरते और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मामले में दक्षिण एशिया लगातार चमकदार आकषर्क स्थान बना रहेगा। वर्ष 2016 में इसकी वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी, जिसमें कि सबसे ज्यादा आर्थिक ग्रोथ यहां अन्य देशों के मुकाबले भारत की रहेगी।
इस सूचना के बाद कहा जा सकता है कि भारत तेजी से आर्थिक ताकत बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। विश्व बैंक की इस बात पर अन्य आर्थिक सर्वेक्षण एवं गतिविधि संस्थाओं को भी भरोसा है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (सीआईडी) के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने ताजा अनुमान में बताया है कि भारत में सालाना 7 प्रतिशत आर्थिक विकास दर का अनुमान है और इस हिसाब से अगले एक दशक के दौरान यह दुनियाभर की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता रखता है। भारत फिलहाल 7 प्रतिशत से ज्यादा अनुमानित विकास दर के हिसाब से अगले एक दशक में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज करने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था की लिस्ट में पहले पायदान पर है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमानों को बनाए रखा है। उसके अनुसार, चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक विकास दर 7.3 फीसद रहने की उम्मीद है। अगले वित्त वर्ष 2016 में रफ्तार बढ़कर 7.5 फीसद हो जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों वर्षों के दौरान दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे तेज विकास दर वाला क्षेत्र होगा। भारत की इस क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 70 फीसद की हिस्सेदारी है। जहां तक भारत का सवाल है, यहां के समग्र आर्थिक हालात में सुधार आया है। भले ही सरकार अपने व्यापक आर्थिक सुधारों के एजेंडे को लागू करने में मुश्किलों का सामना कर रही है, मगर निवेशकों और उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है। निश्चित ही इन नवीन परिस्थितियों को आज हमें भारत की दुनिया के सामने आर्थिक ताकत के रूप में तेजी से आगे बढ़ते हुए कदमों के रूप में देखना चाहिए।
लेखिका, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय में अतिथि सहायक प्राध्यापिका एवं पत्रकार हैं ।