उत्तराखंड का राजनैतिक संकट

Update: 2016-03-23 00:00 GMT

भारत में संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है। संघात्मक संवैधानिक व्यवस्था होने से केन्द्र और राज्यों के अधिकार दायित्व का निर्धारण संविधान द्वारा निर्धारित है। इसलिए राज्य विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन बहुमत के आधार पर होता है। यही स्थिति लोकसभा के चुनाव की है। राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर अनुच्छेद 356 के तहत वहां राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था की जाती है। उत्तराखंड देश का छोटा राज्य है, इसे देवभूमि इसलिए कहा जाता है, इसमें अधिकांश हिन्दुओं के तीर्थ हैं। वहां अभी तक हरीश रावत की कांग्रेस की सरकार है। कुल 70 सीटों में से कांग्रेस के पास 38 सीटें हैं। अब कांग्रेस के नौ विधायकों ने विद्रोह कर दिया है। भाजपा के 28 विधायक हैं। नौ विधायक कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का साथ देते हैं तो भाजपा को सरकार बनाने का अवसर मिल सकता है। राज्यपाल ने हरीश रावत को 28 मार्च तक बहुमत सिद्ध करने को कहा है। राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति निर्णय लेंगे। दलबदल अधिनियम के तहत विद्रोही विधायकों की सदस्यता भी निरस्त हो सकती है। सवाल यह नहीं है कि हरीश रावत की सरकार रहती है या जाती है यह सवाल महत्व का है कि राजनीतिक अराजकता की स्थिति में प्रशासन ठप हो जाता है। जनता के सरकारी काम रुक जाते हैं। यह भी अनुभव है कि राजनीतिक अस्थिरता में अफसरशाही पर लगाम नहीं रहती, वे मनमानी करने लग जाते हैं। भ्रष्टाचार के अवसर बढ़ जाते हैं। इसके साथ ही विद्रोही विधायकों की खरीद फरोख्त होने लगती है। सरकार गिराने वाले अपनी कीमत वसूल करने लगते हैं। सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार ऐसी क्या परिस्थितियां बनीं जिसके कारण उत्तराखंड में यह हालात उत्पन्न हुए। देखा जाए तो जब से हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने थे, तभी से उनके रवैए में परिवर्तन आना शुरू हो गया था। वे एक हिटलर की तरह राज्य को चलाने की कोशिश कर रहे थे, यहां तक कि कई बार उनके ही साथियों ने उन्हें अपने रवैए में परिवर्तन करने को कहा लेकिन उनके रवैए में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। यह सब कांग्रेस विधायक काफी दिनों से देख रहे थे, लेकिन अपनी ही सरकार के खिलाफ यह विधायक मुंह नहीं खोल पा रहे थे, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर होने लगा तब बगावत शुरू हो गई और कांग्रेस के इन विधायकों ने मुख्यमंत्री के प्रति अपना अविश्वास जाहिर कर दिया। बहरहाल राज्यपाल ने हरीश रावत को 28 मार्च तक का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया है। यदि वह अपना बहुमत साबित कर देते हैं तो ठीक है नहीं तो निश्चित तौर पर यहां भाजपा की सरकार बनने के रास्ते खुल चुके हैं।

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