देहरादून। मुख्यमंत्री हरीश रावत के पास 28 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने के अलावा एक और विकल्प भी है। वे इससे पहले विधानसभा भंग करके चुनाव कराने का रास्ता भी चुन सकते हैं। ऐसा करके रावत सरकार सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करेगी। सरकार इंटेलीजेंस के अफसरों से इनपुट जुटा रही है। शुक्रवार को इंटेलीजेंस के अफसर अशोक कुमार की सरकार से गुफ्तगू को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
कांग्रेस के लिए दो बातें अनुकूल हैं। एक, विधानसभा में बहुमत साबित करके बागी कांग्रेस नेताओं और भाजपा का सारी योजना चौपट कर दी जाए। इससे हरीश रावत की सरकार पहले से ज्यादा मजबूत हो जाएगी। लेकिन बहुमत साबित नहीं होने की सूरत में सरकार तो जाएगी ही, साथ ही सहानुभूति मिलने की उम्मीद भी खत्म हो जाएगी।
बागी विधायक और भाजपा विजयी मुद्रा में आ जाएंगे और चुनाव साल के अंत तक होगा। तब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहेगा। इतने लंबे सफर में पता नहीं ऊंट किस करवट बैठे। अगर 27 मार्च को दल बदल कानून के तहत बागियों की सदस्यता खत्म कर दी गई तो फिर सदन में सरकार की जीत पक्की है। यह भाजपा भी जानती है।
ऐेसे में भाजपा का एक खेमा बागियों की सदस्यता समाप्त करने के फौरन बाद राष्ट्रपति शासन लगाने की वकालत कर रहा है। भाजपा का इस पूरे मामले में सियासी फायदा तभी है, जब सरकार सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान हार जाए। उससे पहले राष्ट्रपति शासन लगाने में भी कांग्रेस को सहानुभूति मिलने की संभावना है।