सख्त कार्रवाई होगी
ग्वालियर। शहर में स्वास्थ्य सेवा को कुछ चिकित्सकों ने सेवा का नहीं अपितु काली कमाई का जरिया बना लिया है। चिकित्सक पैसे कमाने के लिए इस पवित्र पेशे को ताक पर रखकर सारी हदों को पार कर चुके हैं। पिछले कुछ सालों से इंगित हुई घृणित घटनाओं से शहर के अस्तित्व पर गहरी चोट लगी है। यहां बता दें कि शहर में रक्तदान का मामला हो या नेत्रदान की हुई आंखों को कचरे में फेंकने का। इन सबके पीछे सरकारी और निजी चिकित्सकों की गंदी सोच सबके सामने उजागर हुई है। ताजा मामले में मुरार के पलाश अस्पताल में नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त के मामले से सनसनी मच गई है। ऐन थाने के पास स्थित इस अस्पताल में न जाने कब से जन्म से पहले ही शिशुओं को खरीदने और बेचने का मामला चल रहा था। इस खबर ने शहर के अतुलनीय वैभव -इतिहास को कलुषित किया है। वहीं ये सोचने पर भी मजबूर किया है कि आखिर ये घटनाएं क्यों हो रही हैं और शहर की आवोहवा सुरक्षित करने के जिम्मेदार नौकरशाह क्या कर रहे हैं। वह भी ऐसे में जब शहर का प्रशासक स्वयं चिकित्सक हो।
हम इन घटनाओं पर कितना भी चिंतन कर लें, लेकिन इन घटनाओं ने शहर के स्वास्थ्य क्षेत्र की पोल खोलकर रख दी है। इसके बावजूद जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे हैं। ऐसे में शहर का नाम तो बदनाम हुआ ही है वहीं प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ बैठक और कार्रवाई करने के आदेश देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं, जो नाकाफी हैं, जबकि ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए सख्त प्रयास करने की जरूरत है। इसके बाद ही ग्वालियर शहर के मुंह पर लगी कालिख साफ होगी।
जिला प्रशासन हुआ गंभीर
मुरार के पलाश हॉस्पिटल में शिशुओं की अवैध खरीद फरोख्त की घटना को जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया है। इस मामले में कलेक्टर ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को पूरी घटना की जांच करने की हिदायत देते हुए कहा है कि आरोपी चिकित्सकों के खिलाफ प्राथमिकी में पीसी-पीएनडीटी एक्ट, नर्सिंगहोम एक्ट, अवैध रूप से शिशुओं को रखना और उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ करने संबंधी धाराओं को भी जोड़ा जाए। इसके साथ ही अस्पताल को सील कर चिकित्सकों का पंजीयन निरस्त करने के लिए मेडीकल काउन्सिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखने के निर्देश भी दिए।
709 महिलाओं के नाम दिए
पलाश हॉस्पीटल में नवजात बच्चों की खरीद फरोख्त का मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने बुधवार को पलाश हॉस्पीटल का बोर्ड हटा कर हॉस्पीटल के गेट पर नोटिस चिपका दिया है। इसके साथ ही अस्पताल का पंजीयन भी निरस्त कर दिया गया है। इस मामले के सामने आने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर भी इस बात को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं कि जिला अस्पताल के सामने स्थित पलाश हॉस्पीटल में यह सब चलता रहा और स्वास्थ्य अधिकारियों को भनक क्यों नहीं लगी। इससे साबित होता है कि स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा निजी अस्पतालों पर कितनी नजर रखी जाती है। इसके साथ ही पुलिस द्वारा स्वास्थ्य विभाग को पलाश हॉस्पीटल में प्रसव कराने वाली 709 महिलाओं की सूची दी गई है। अब स्वास्थ्य विभाग इन महिलाओं के नाम के आधार पर शासकीय अस्पतालों में इस बात की जांच-पड़ताल करेगा कि यह महिलाएं शासकीय अस्पताल में भी प्रसव कराने तो नहीं पहुंची थीं।
भ्रूण परीक्षण करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ होगा मामला दर्ज
भ्रूण परीक्षण में पीसी-पीएनडीटी एक्ट का पालन नहीं करने वाले तीन चिकित्सकों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज होगा। कलेक्टर डॉ. संजय गोयल की पहल पर इन आरोपी चिकित्सकों के खिलाफ पुख्ता तथ्यों के साथ आरोप तय किए गए हैं। यहां बता दें कि वर्ष 2009 में दिल्ली की एक संस्था द्वारा स्टिंग ऑपरेशन के जरिए इन तीनों चिकित्सकों को भ्रूण लिंग परीक्षण एवं पीसी-पीएनडीटी एक्ट का उल्लंघन करते हुए पकड़ा गया था। इस आधार पर इन तीनों आरोपी चिकित्सकों के खिलाफ न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किए गए थे। जिला अभियोजन अधिकारी अब्दुल नसीम ने बताया कि आरोपी चिकित्सक डॉ. संध्या तिवारी एवं डॉ. एस.के. श्रीवास्तव के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय किए गए हैं। वहीं डॉ. सुषमा त्रिवेदी के खिलाफ भी पीसी-पीएनडीटी एक्ट व एमटीपी एक्ट में मामला दर्ज होगा।