युवाओं में पेट डॉग के प्रति बढ़ी दीवानगी

Update: 2016-05-16 00:00 GMT

विदेशी ब्रीड के श्वान पालने का शौक बढ़ा

प्रशांत शर्मा/ग्वालियर। किसी का शौक कब जुनून में बदल जाए, कुछ कहा नहीं कहा जा सकता। वर्तमान में पेट डॉग (पालतू श्वान) पालने को लेकर दीवानगी शहरवासियों विशेषकर युवाओं के सिर चढ़कर बोल रही है। इसके लिए हजारों क्या लाखों रुपए कुर्बान करने वालों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। शहर में इन दिनों श्वान पालने का शौक तेजी से परवान चढ़ रहा है। पहले यह गिने-चुने लोगों का शौक होता था, लेकिन आज यह आम हो है। जिस गति से लोगों में पेट डॉग (पालतू श्वान) के प्रति दीवानगी बढ़ रही है, उसी गति से इनकी मांग भी बढऩे लगी है।

युवाओं में श्वान पालने का शौक तेजी से बढ़ रहा है। चाहे वह कामकाजी हों या बिजनेस में सभी श्वान रखना चाहते हैं। सुबह-शाम हर कॉलोनी में सैकड़ों की संख्या में लोग अपने श्वानों को सैर कराते दिखाई देते हैं। अगर शहरी क्षेत्र की बात छोड़ दी जाए, तो गांवों के लोगों में भी विदेशी ब्रीड के श्वानों को पालने का शौक बढ़ रहा है। शहर में ऐसे लोग भी हैं, जो श्वानों पर हर महीने 10 से 15 हजार रुपए खर्च करने से नहीं कतराते।

श्वानों की ऑनलाइन शॉपिंग
लोगों में श्वान पालने के शौक का दायरा बढ़ते देख बाजार भी इसे भुनाने में पीछे नहीं हैं। श्वानों की जरूरी चीजों को घर तक पहुंचाने का जिम्मा लेने वाले भी बाजार में आ गए हैं। ऑनलाईन वेबसाइट्स पर ऑर्डर कर आप घर तक श्वानों के ड्रेस सहित पेडेग्री (श्वान का भोजन) भी मंगा सकते हैं।

डॉग ट्रेनर और क्लीनिक की भी सुविधा
शहर में कुछ ऐसे डॉग ट्रेनर भी हैं, जिसमें लोग अपने श्वानों को छोड़ जाते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हंै, जो कहीं बाहर जाने से पहले श्वान को डॉग ट्रेनर के पास छोड़कर जाते हैं और वापसी में साथ लेकर आते हैं। शहर में पेट डॉगी के लिए अस्पताल की भी सुविधा है।

हर महीने हजारों का खर्च
श्वान की न सिर्फ कीमत हजारों में है बल्कि खुराक और रखरखाव का खर्च भी बेहिसाब है। विदेशी ब्रीड होने के कारण ये श्वान गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए विदेशी ब्रीड के श्वान एसी में रहते हैं। इनके खाने के लिए खास भोजन मंगाया जाता है। खर्च की बात करें तो हर माह विदेशी ब्रीड के श्वान पर हजारों रुपए का खर्च किया जाता है।

बाजार में यह भी सामान
फीडिंग बाउल
बेड्स
ग्रूमिंग किट्स
ट्रेनिंग एक्विपमेंट
बॉस्केट

चबाने वाली नकली हड्डी
हेयर टॉनिक
नेल कटर
कंघा
प्ले बॉल

श्वान के परिधान
श्वानों के शौकीन जितना प्यार अपने बच्चों से करते हैं, उतना ही अपने श्वानों से भी करते हैं। यही कारण है कि उनकी देखभाल और सुरक्षा की चिंता उन्हें बार-बार परेशान करती रहती है। वह श्वानों के लिए ब्रांडेड कपड़ों की शॉपिंग करते हैं। श्वानों के लिए आज काफी वेरायटी में परिधान उपलब्ध हैं। उनके लिए आज रेनकोट, टॉवेल, टी-शर्ट, बरमूडा, बेबी वीयर, पजामा और स्कर्ट खूब प्रचलन में हैं। शहर के हुजरात रोड, थाटीपुर और पड़ाव में अक्सर यह नजारा दिखाई देता है कि मैडम की गोद में श्वान पूरे ड्रेस में होता है। कभी-कभी तो वह गॉगल्स भी पहन कर आते हैं।

शहर के बिरलानगर स्थित चंदनपुरा में रहने वाले अंशु तोमर को ब्रांडेड नस्ल के श्वान पालने का शौक है। उनका कहना है कि खर्चा नहीं, शौक बड़ी चीज है। वह अपने श्वान को अच्छा दोस्त भी समझते हैं, उनका कहना है कि वह अपने श्वान पर हर माह कम से कम आठ हजार रुपए तक खर्च कर देते हैं। मेडीकल से लेकर उसके खाने-पीने और परिधानों में यह खर्चा होता है। उन्होंने बताया कि इसी शौक के चलते उन्होंने ब्लैक कलर का लैब्राडोर नन्हा श्वान खरीदा था, जिसका उन्होंने नाम जैम्स रखा है, लेकिन आज वह घर में एक सदस्य की तरह रहता है।

पॉमेलियन का शौक कम
अब लोगों में बाक्सर व पॉमेलियन श्वानों को रखने का शौक कम हो गया है। कुछ साल पहले घरों में छोटी कद काठी वाले पॉमेलियन श्वानों को ज्यादा पाला जाता था। अब बड़ी कद काठी व डरावने श्वानों का शौक देखा जा रहा है। आरपी कॉलोनी में रहने वाले बबुआ तोमर ने बताया कि उनके पास लेब्राडोर के दो श्वान हैं। यह दोनों काफी खतरनाक नस्ल के हैं। इन्हें करीब तीन साल पहले खरीदा था। इन्हें देखकर उनके कई दोस्त भी विदेशी नस्ल के श्वान खरीद लाए हंै।

घर का सबसे लाड़ला है शीरो

मुरार स्थित स्वामी प्लाजा में रहने वाले दक्ष सिंघल के पिता ने उनके जन्म दिवस पर आज से दो साल पहले उन्हें एक पॉमेलियन श्वान उपहार में दिया था। आज उन्हें अपने श्वान से इतना लगाव हो गया है कि स्कूल के बाद सारा वक्त उसी के साथ बिताते हैं। छ्ट्टी वाले दिन वह सारा दिन उसके साथ रहते हैं। उन्होंने बताया कि वह उसको हर रोज सुबह खाने में पनीर और टमाटर के साथ पेडीग्ररी देते हैं।

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