उपचुनावों में भाजपा ही रही भारी
दिनेश राव
३० मई को होने वाले घोड़ाडोंगरी विधानसभा उपचुनाव की तैयारियां अब तेज हो गई हैं। कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव मैहर का बदला लेने का अवसर जरूर है लेकिन धड़ों में विभाजित कांग्रेस यहां कितना बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी, यह कहना मुश्किल है। रतलाम लोकसभा और बहोरीबंद विधानसभा के उपचुनाव को छोड़ बाकी सभी उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस के खिलाफ ही गए हैं। यह उपचुनाव भले ही एक सीट के लिए हो, जिसके हारने या जीतने से न तो सरकार की संख्याबल पर असर पडऩे वाला है और न ही विपक्ष पर। लेकिन राजनैतिक वातावरण बनाने में उपचुनाव का अच्छा खासा महत्व होता है।
सत्तापक्ष के लिए यह उपचुनाव जैसे प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है क्योंकि उम्मीदवार के हार-जीत के साथ ही सरकार के कामकाज की समीक्षा होने लगती है। प्रत्याशी यदि हारता है तो ठीकरा अंतत: प्रदेश के मुखिया पर ही फोड़ा जाता है और संगठन स्तर पर भी सरकार के कामकाज को लेकर उंगलियां उठना शुरू हो जाती हैं, प्रत्याशी यदि जीतता है तो मुखिया की तारीफ होना तो लाजिमी है ही साथ ही पार्टी के भी नंबर बढ़ जाते हैं और यही कारण है कि सत्तारूढ़ पार्टी उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देती है। सत्तापक्ष के साथ साथ प्रमुख विपक्षी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ उपचुनाव में उतरने का प्रयास करती है। इसके पीछे उसका लक्ष्य सत्ता हासिल करना नहीं बल्कि जनता के बीच सरकार की किरकिरी करना ही होता है। मध्य प्रदेश की बात करें तो भाजपा के शासनकाल में हुए उपुचनावों में यहां अब तक सोलह सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है जबकि पांच सीटों पर कांग्रेस जीती है। केवल एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई है। मौजूदा विधानसभा की बात करें तो प्रदेश में यह आठवां उपचुनाव होगा। इसके पहले सात उपचुनाव हुए हैं। सात में से छह उपचुनाव भाजपा ने जीते हैं। एकमात्र बहोरीबंद सीट पर ही कांग्रेस को सफलता मिली है। यह सीट अप्रैल 2014 में भाजपा विधायक प्रभात पांडे के निधन की वजह से रिक्त हुई थी। इस सीट पर कांग्रेस के सौरभ सिंह विजयी हुए थे। अन्य छह सीटों में दो सीटें विजयराघौगढ़ और मैहर ऐसी सीटें रही जिन पर हुए उपचुनाव में सफलता भाजपा को मिली। दोनों सीटें 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी। विदिशा, आगर, गरोठ और देवास सीटें भाजपा ने 2013 में जीती थी। बाद में इन सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल रही।
जहां तक घोड़ाडोंगरी विधानसभा की बात है तो यहां हमेशा से ही भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। 1962 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। विधानसभा सीट बनने के बाद 1962 से 2013 तक कुल 12 चुनाव यहां हुए हैं। आठ बार यहां भाजपा चुनाव जीती। जबकि चार बार कांग्रेस यहां जीत हासिल करने में सफल रही। यह सीट 2003 से भाजपा के पास है। उमा भारती की अगुवाई में यह सीट सज्जन सिंह उइके ने जीती थी। 2008 में किसी कारणवश सज्जन सिंह को यहां से टिकट न देकर गीता उइके को उम्मीदवार बनाया गया था और उन्होंने यह सीट जीत ली थी। 2013 के चुनाव में पार्टी ने एक बार फिर से यहां से टिकट सज्जन सिंह उइके को दिया और वे कामयाब रहे। सज्जनसिंह के निधन के चलते यह सीट रिक्त हुई है जिस पर ३० मई को उपचुनाव कराये जा रहे हैं। इस सीट के लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों ने ही अपने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। भाजपा ने जहां मंगलसिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने प्रताप सिंह उइके को प्रत्याशी बनाया है।
भाजपा के लिए यह पहला चुनाव होगा जिसमें नए संगठन महामंत्री सुहास भगत का सांगठनिक कौशल भी देखने को मिलेगा। हालांकि अरविंद मेनन उनके साथ रहेंगे।